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चन्द्रगुप्त (द्वितीय) के उदयगिरि लेख
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( क्रमाङ्क 1 )
1. सिद्ध हो। संवत् 82 (के) आषाढ मास (के) शुक्ल (पक्ष की) एकादशी (के दिन) परमभट्टारक महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्त के चरण सेवक
सिद्ध हो।
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महाराज छगलग के पौत्र, महाराज विष्णुदास के पुत्र, सनकानिक महाराज सोढल (?) का यह दानधर्म है।
(क्रमाङ्क 2 )
जो अपनी अन्तर्ज्योति के कारण सूर्य का कान्तिशाली पृथ्वी पर ( रात दिन) शोभित होता है, (उस) अद्भुत का नाम चन्द्रगुप्त है। 1
( जिसके ) विक्रम के मूल्य से क्रीत राजा दासता का अपमान सह रहे हैं तथा जिस धर्म (कर्तव्याकर्तव्य के ज्ञाता) के आदेश पर (भूमि अथवा प्रजा) अनुरक्त है। 2
अचिन्त्य (यथावत् अचिन्तनीय) एवं उज्ज्वल (शुभ तथा श्रेष्ठ) कर्म करने वाले उस राजाधिराजर्षि (ऋषितुल्य राजाधिराज) का वंशानुगत सचिव, जो सन्धिविग्रह ( के कर्तव्य) में लीन है। 3
जो कौत्स (गोत्र का है, शाव नाम से प्रसिद्ध है तथा कुल में जिसे वीरसेन कहते हैं। जो शब्द (व्याकरण), अर्थ (शास्त्र), न्याय तथा लोक (व्यवहार) का ज्ञाता एवं कवि और पाटलिपुत्र का निवासी है। 4
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सारी पृथ्वी जीतने के इच्छुक राजा ( चन्दगुप्त ) के ही साथ ( वह ) यहां (विदिशा, उदयगिरि) आया तथा ( उसने) भक्तिपूर्वक भगवान् शम्भु की यह गुफा बनवायी। 5