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चन्द्र का महरौली लोहस्तम्भलेख
97 2. जिसने सिन्धु के सात मुखों (स्रोतों) को पारकर युद्ध में बाह्निकों को
पराजित किया तथा जिसकी वीरता की वायु का दक्षिण (हिन्द महा)सागर अब भी निवास बन रहा है। (भूभार वहन करने से) थके से नरेश ने (इस) भूमि (लोक) को त्याग (अन्य) भूमि (लोक, स्वर्ग) का आश्रय ले लिया। जो शरीर से कर्म के द्वारा (अन्य) भूमि (स्वर्ग) पर जाकर विषय प्राप्त करके भी कीर्ति से
पृथ्वी पर ही स्थित है। 4. विशाल अटवी में शान्त हुए दावानल के समान, शत्रुओं का सयत्न नाश कर्ता
(चन्द्र) का प्रताप अब भी पृथ्वी को नहीं छोड़ता, बल्कि शेष है। 5. अपनी भुजाओं से अर्जित ऐकाराधिराज्य को, सम्पूर्ण चन्द्रमा सी मुखकान्ति
धारण कर भूमि पर शोभित होने वाले आदरणीय चन्द्र नामक राजा देव (देवगुप्त) ने विष्णु में श्रद्धाकर विष्णुपद पर्वत पर भगवान् विष्णु का समुन्नत ध्वज स्थापित किया।
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