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स्कन्दगुप्त का भितरी शिलालेख
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रणक्षेत्र में हूणों से युद्ध करते समय जिस भयंकर आवर्त (चक्र) कर्ता के
शत्रुओं पर बाण वर्षा करती उसकी भुजाओं से पृथ्वी कांप उठी। 16. उसका प्रथित कान्तिमान् धनुष अपनी टंकार से कानों में शाङ्गरव की ध्वनि
की सी प्रतीति करवाता था। 8 17. अपने पिता की कीर्ति . . . . 1 9
उस शाी विष्णु की तदनुरूप यह प्रतिमा जब तक चन्द्र तथा तारे हैं तब तक के लिये सुप्रतीत (सुस्थिर) बना दी गयी है। 10 यह अप्रतिहत शासन (प्रभविष्णु) इसे यहां प्रतिष्ठित कर पिता की
पुण्यवृद्धि के लिये गांव प्रदान करता है। 11 19. सो पवित्र विचार वाले (स्कन्दगुप्त) ने यहां जो भगवान् की यह मूर्ति
स्थापित की वह पिता के दोनों (लोक के) पुण्य के लिये हो। 12
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