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प्राचीन भारतीय अभिलेख
के लिये अपूर्व 19. दान विधि से दिया। पूर्व नृपों के (द्वारा प्रदत्त) अनुसार इस चतुर्वेदी ब्राह्मण
से युक्त ग्राम के लिये उचित परिहार। (छुट अथवा गांव के चारों ओर सौ
धनुष का क्षेत्र') देते हैं। 20. सो यहां न राष्ट्र के प्रशासक प्रशासन करें, यहाँ नमक से गीली (खान) न खोदें, ये स्वर्ण, धान्य,
(तृतीय पत्र : अपर भाग) 21. भेंट आदि न दें, (राजा के लिये) पुष्प, दूध आदि न लें, (दूध के लिये)
गाय तथा (गाड़ी के लिये) बैलों के समूह (शासकीय कर्मचारी) न लें; 22. वारी (Turn) पर नियोग (duty) न हो, (अश्व की जीन के लिये)
न तो चर्म तथा न कोयले लिये जायें, सैनिक प्रवेश न करें, (दौरे पर गये अधिकारी) खाट, पाक-पात्र तथा बेगार न लें, वे न कर दें, मुफ्त में भारवहन न करें। प्रच्छन्न एवं संचित निधि, निर्धारित
सीमा, 24. (शासकीय अथवा सार्वजनिक कार्यों के लिये) निर्मित विशाल चबूतरे,
आदि हर प्रकार की छूट दी गयी। ऊपर लिखे अनुसार 25. शासकीय लेख को प्रमाण मानकर (इस दान की) रक्षा करो तथा करवाओ, (इसे हर प्रकार से) मुक्त रखो
(4)(चतुर्थ पत्र) 26. तथा मुक्त रखवाओ। जो (इस आदेश में) बाधा डाले अथवा बाधा डालने
से सहमत होगा, 27. उसे हम उपर्युक्त ब्राह्मणों के द्वारा सूचित करने पर दण्ड से
अनुशासित करेंगे। संवत् 37, हेमन्त (मार्गशीर्ष) का प्रथम (कृष्ण) पक्ष का 29. पांचवां दिन। (राजा ने यह) आदेश अपने मुख से दिया है। यह आदेश
सेनापति 30. विष्णु ने लिखा। सिद्धि हो।
1. धनुः शतं परीहारो ग्रामस्य स्यात्समन्ततः। मनुस्मृति, 8/237
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