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प्राचीन भारतीय अभिलेख 8. विद्यस्य श्रोतव्यमाज्ञा च कर्त( व्या) (स)। (च) (स)
मुचिता ग्रा(म) प्रत्या( या )मेयहिरण्यादयो देया न चेतः प्र9. (भृ )त्यनेन त्रै (वि)येनान्यग्रामादिकरकुटुम्बि( कारुक गदयः
प्रवेश(यित )व्या (म)न्यथ(1) नियतमाग्रहाराक्षेपः 10. (स्य )दिति॥ सम्वत् 5 माघ-दि0 2 निवद्धः (।) 11. अनुग्रामाक्षपटलाधि( कृत) महापीलूपति-महावलाधि( कृत
गोपखाम(य् देश-लिखितः (।) 12. (कुमा )रश्रीचन्द्रगुप्तः (॥)। 1. ओम् स्वस्ति। विशाल जहाज, हाथी, घोड़े (आदि) के सैन्यशिविर के
आनन्दपुर (बडनगर, गुजरात) पडाव से सारे नृपों का विनाशक, पृथ्वी का
अप्रतिम योद्धा, जिसके यश ने चारों समुद्रों के जल का आस्वाद किया, 2. __ कुबेर, वरुण, इन्द्र तथा यम के समान, कृतान्तपरशु (यम के फरसे सा),
न्याय से उपलब्ध अनेक करोड़ गो तथा हिरण्य का दाता, चिर काल से
त्यक्त
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अश्वमेध का कर्ता, महाराज श्रीगुप्त का प्रपौत्र, महाराज श्रीघटोत्कच का पौत्र महाराजाधिराज श्रीचन्द्रगुप्त का पुत्र लिच्छिवि का दौहित्र, महादेवी कुमारदेवी से उत्पन्न परमभागवत महाराजाधिराज श्रीसमुद्रगुप्त तावि(गुण्य?) विषय के भद्रपुष्करक ग्राम तथा क्रिमिला विषय के पू(र्णना)ग ग्राम के (ब्राह्मण पुरोग) निवासी (ग्रामवलत्-गांव वाले?) व कौश (कर वसूलने वाला शासकीय अधिकारी?) को कहते हैं। और यह कहते हैंआप लोगों को ज्ञात हो कि ये दोनों गांव माता, पिता तथा अपने पुण्य की अभिवृद्धि के लिये मैंने जयभट्टिस्वामी को (दिये?) ... भूमिपति से प्राप्त होने वाला कर अग्रहार रूप में प्रदत्त होने से मुक्त किया गया। सो आप इस विद्य (तीनों वेदों के ज्ञाता-त्रिवेदी) की आज्ञा सुनें (मानें) और (वैसा
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