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प्राचीन भारतीय अभिलेख
1.
महासेनापतिना मेधुनेन. . .ना छतो। बटि(का). . .केहि (पटिकापालकेहि). . .तो (उपरखितो? )। दता पटिका सव 22 गिपखे. . .दिव 7/ .. तकणिना (सातकनिना? ) कटा। गोवधन-वाथवान फा( सुकाये) विण्हुपालेन स्वामि-वणन णत। नम भगत-सपति-पतपस जिनवरस बुधस। सिद्ध। नवनर स्वामी वासिष्ठीपुत्र श्री पुलुमावि आज्ञा देता है-गोवर्धन (पर्वत) पर अमात्य शिवक्षतिल और हमारे वर्ष 19 ग्रीष्म पक्ष 2 (द्वितीय) दिवस 13 घनकट श्रमणों से जो इस त्रिरश्मि पर्वत पर धर्म का सेतु रूप गुफा पार करने में स्वामी निधि देने हेतु इस गोवर्धन आधार (तल) पर दक्षिण पथ पर ग्राम मेधावी देवि गुफा के निवासी भद्रानीक भिक्षु-निकाय द्वारा प्रतिग्रह (पात्र) दिया। मेधावियों के इस दान के ग्राम के परिवर्तन में यहां गोवर्धनाधार के पूर्व मार्ग पर समलिपद ग्राम हमने दिया। ये वे महा ग्रामप्रमुख चावल (धान) के लिए/गीले कपड़ों से धर्म के सेतु गुफा अनुकूल करने में अक्षय नीवि (स्थायी धन) के लिए ग्राम सामलिपद्र देविलेन के निवासी भिक्षुओं को भद्रायक निकाय के जो हों वे लें और यह अपरिवर्तनीय (अहस्तांतरणीय) है। इस सामलिपद्र ग्राम के भिक्षुओं की खेती के परिहार के लिए हम वितरण करते हैं (आदेश देते हैं) कि किसी का प्रवेश न हो-न मापने वाले पटवारी का, न नमक खोदने वालों का, न राजा के प्रतिनिधि (राष्ट्रिक) का, समस्त लोगों का निषेध। इन निषेधों में यह समलिपद ग्राम-परिहारों से यहां जुड़े सुदिसन ग्राम है। सुदसिन प्रतिबन्धित है निर्माल्य के समान। महासेनापति ने बिना छत्र, बिना लगान के दिया। पट्टा दे दिया सो (सब) ख्यात (और ज्ञात) हो। 11 ग्रीष्म पक्ष में दिन 7. . . (चावल का) कण किया। गोवर्धन निवासी अचेतनवत् विष्णुपाल स्वामी के सामने नत है। भक्त की संपत्ति के प्रताप जिनवर बुद्ध को प्रणाम।
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