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उषवदात का नासिक गुहालेख
1.
मूलय (') (॥) 6. फलकवारे चरित्रतो ति (॥) सिद्ध। 42वें वर्ष वैशाख मास में क्षहरात राजा नहपान के जामाता दीनीक के पुत्र उषवदात (ऋषभदत्त) ने चातुर्दिश (सर्वदेशीय) संघ के लिए यह गुहा नियत कर दी। और उसने अक्षय नीवी (स्थायी निधि) कार्षापण सहस्र तीन 3000 चातुर्दिश संघ के लिए जो इस लयन के निवासियों का चीवर मूल्य और कृशान्नमूल्य है और ये कार्षापण गोवर्धन निवासी श्रेणियों में कौलिय निकाय में 2000 हैं। जिनकी वृद्धि प्रतिशत पर एक है। अन्य कौलिक निकाय में जो 1000 (हैं) उनकी वृद्धि शत पर एक पादोन। ये कार्षापण अप्रतिदातव्य वृद्धि प्राप्त करने वाले हैं। इनमें चैवरिक 2000 कार्षापण जो शत पर एक वृद्धि वाले। इसमें से लयणवासी भिक्षुओं में 20 के लिए प्रत्येक का चैवरिक 12 कार्षापण जो सौ पर एक पादोन वृद्धिष्णु सुरक्षित 1000 कार्षापण, इसमें से कृशान्न मूल्य-कपूराहार में चिखलपद्र ग्राम में प्रदत्त नारियल मूल्य 8000। यह सब निगम सभा में सुनाया गया और फलक समूह पर लिखा गया है। आधार के अनुसार। बाद में इसके द्वारा दिया गया 41वें वर्ष में कार्तिक के शुक्ल पक्ष में पन्द्रहवें दिन - पूर्वदत्त 45 वें वर्ष
3.
पन्द्रहवें दिन स्थायी निधि (रूप) भगवान् देवों और ब्राह्मणों के लिए 7000 कार्षापण, 35 सुवर्ण तथा सहस्र मूल्य का कर। फलक समूह पर आचरण अनुसार।
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