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वासिष्ठपुत्र पुलुमावि का नासिक' गुहालेख
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नासिक (महाराष्ट्र) भाषा-प्राकृत लिपि-ब्राह्मी, वर्ष 19 (149 ई०) सिद्ध। रजो वासिठीपुतस सिरि पुळुमायिस सवछरे एकुनवीसे 10+9 गीम्हाणं पखे बितीये 2 दिवसे तेरसे 10(+ )3 राजरो गोतमीपुतस हिमव(त)-मेरुमंदर पवत समसारस असिक-असक-मुळक-सुरठ-कुकुरापरंतअनुप-विदभ-अकरावंति-राजस (आनर्त के अनुल्लेख से प्रतीत होता है कि यह कुछ काल तक कुकुर में विलीन रहा। गौतमी पुत्र ने नहपान से जो पाया वह चष्टन व रुद्रदामन के हाथों खो दिया। तीसरी पंक्ति-समुद तोय पीतवाहन-दिग्विजय वर्णन है। मलय-नीलगिरि से दक्षिण में पश्चिमी घाट, महेन्द्र-पूर्वीघाट आदि पर। (विझछवत-परिचात( वात) सह-कण्हगिरिमच-सिरिटन-मलय-महिदसेटगिरि-चकोर पवत-पतिस (विन्ध्य-पूर्वी विन्ध्य, रिक्षवत् नर्मदा से पूर्व का विन्ध्य, पारियात्र-प० विन्ध्य तथा अरावली, सह्य-पश्चिमी घाट, कृष्णगिरि-कन्हेरी, सेटगिरि-गुण्टुरजिले में नागार्जुन कोण्डा के निकट की पहाड़ी। सवराज (लोक) म(-)उलपति पतिगहीत-सासनस दिवसकर-(क)रविबोधित-कमलविमल-सदिस-वदनस तिसमुद-तोय-पीत
१०० 8. पृ० 60-65
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