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प्राचीन भारतीय अभिलेख (आदि विषैले तथा जंगली हिंसक) जन्तु, रोग आदि (उपद्रवों) से अछूते;
नगर-निगम (नगर सभा तथा) 11. जनपद वाला, अपनी शक्ति से जिसने पूर्वी एवं पश्चिमी आकर (पूर्वी
मालवा), अवन्ति (पश्चिमी मालवा), अनूप (निमाड़), आनर्त (उत्तरी काठियावाड), सुराष्ट्र (दक्षिणी काठियावाड), श्वभ्र (साबरमती का तटवर्ती क्षेत्र, मरु (मारवाड़), कच्छ, सिन्धु (दक्षिण सिन्धु का पश्चिमी भाग), सौवीर (दक्षिण सिन्धु का पूर्वी भाग), कुकुर (उत्तरी काठियावाड), अपरान्त (उत्तरी कोंकण), निषाद (विनशन से पारियात्र तक का भाग; पश्चिमी विन्ध्य से अरावली तक) आदि सारे विषय (क्षेत्रों) के स्वामी तथा इन सारे स्थलों की प्रकृति (प्रजा अथवा मन्त्री प्रभृति) जिस पर अनुरक्त हैं एवं अपने इस प्रभाव से जिसे धर्म, अर्थ, काम आदि विषयों को
समुचित रूप से प्राप्त है, सारे क्षत्रियों में 12. वीर शब्द का संचार कर (अपनी वीरता की धाक जमाकर) गर्विष्ठ तथा
वश में न होने वाले यौधेयों को बरबस (बलपूर्वक) उखाड़, फेंकने वाला दक्षिणापथ के स्वामी (गौतमीपुत्र) सातकर्णी को दो बार निश्छल रूप से जीत-जीत कर निकट सम्बन्धी होने से न उखाड़कर (समूल नष्ट न कर) यश प्राप्त करने वाले, विजय प्राप्त कर्ता, उच्छिन्न नृपों को (पुनः अपने
राज्य लौटाकर) स्थापित कर्ता, वस्तुतः हाथ 13. उठाकर, तेजस्वी (दृढ़) धर्मानुराग अर्जित करने वाला; शब्द (व्याकरण),
अर्थ (कोष या अर्थशास्त्र-राजनीति), गान्धर्व (संगीत), न्याय (तर्कशास्त्र अथवा न्यायदर्शन) आदि श्रेष्ठ विद्याओं के पारण (अध्ययन), धारण (स्मृति में रखना), विज्ञान (सम्यक् बोध) तथा प्रयोग (व्यावहारिक उपयोग) से विपुल कीर्ति अर्जित करने वाला; हाथी, घोड़े, रथ आदि के संचालन तथा ढाल-तलवार के युद्ध आदि में शक्ति, स्फूर्ति एवं परम कौशल कर्ता प्रतिदिन दान, सम्मान करने वाला (तथा किसी का) अपमान
न करने वाला, 14. अत्यन्त दानशील (उदार); मालगुजारी, चूंगी तथा राज्यकर से (प्राप्त)
1.
पतंजलि के महाभाष्य (1/1/1) में भी यही कहा गया है-- चतुर्भिः प्रकारैर्विद्योपयुक्ता भवति-आगमकालेन, स्वाध्याय कालेन, प्रवचनकालेन, व्यवहारकालेनेति। नैषध(1-4) में भी यही है। -अधीतिबोधाचरणप्रचारणैः।
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