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प्राचीन भारतीय अभिलेख
कणिता मुलेन काहापण - सहस्रेहि चतुहि 4000 यो स-पितु सतक नगरसीमायं उतरापरा [ यं ] दीसायं [] एतो मम लेने वस तानं चातुदीसस भिखु- सघस मुखाहारो भविसती [ ॥ ]
सिद्ध हो। क्षहरात (परिवार के) क्षत्रप राजा नहपान के दामाद, दीनीक के पुत्र उषवदात (ऋषभदत्त) जो तीन लाख गायें दान कर्ता, वार्णासा (बनास?) नदी पर सोपान बनवाकर स्वर्णदान करने वाला। देवता एवं ब्राह्मण के लिये 16 ग्राम दान करने वाला, प्रतिवर्ष एक लाख ब्राह्मणों को भोजन करवाने
वाला
पवित्र तीर्थ प्रभास (काठियावाड) में ब्राह्मणों को (विवाह करवाकर ) आठ पत्नियां प्रदान करने वाला; भृगुकच्छ (भडौंच), दशपुर ( मन्दसौर), गोवर्धन ( नासिक के निकट ) एवं शूर्पारक (थाना जिले का सोपारा) में (यात्रियों के) आश्रय के लिये चतुश्शाल धर्मशाला (बनवाकर) दानकर्ता एवं उद्यान, तालाब, उदपान (कुआ अथवा उसके निकट की खैर) का निर्माता, इबा, पारादा (सूरत जिले में पर) दमन, (पुर्तगाली शहर दमन के निकट से बहने वाली दमनगंगा ? ), तापी (ताप्ती), करवेण्वा तथा दाहनुका (पुर्तगाली शहर दहने की निकटवर्ती?) नदी को नौका से पार करने में पुण्यतर (शुल्कमुक्त ) करने वाला और इन नदियों के दोनों तटों पर सभा (विश्रामालय) एवं प्रपा (प्याऊ) बनवाने वाला; पिण्डितकावट, गोवर्धन, सुवर्णमुख, शूर्पारक और रामतीर्थ में चरकपरिषद् (चरकसम्प्रदाय के अनुसर्ता अथवा परिव्राजक भिक्षु संघों) को नामंगोल ( थाना जिले के संजान के निकट नार्गोल ? ) गांव में बत्तीस नारियल के (ऐसे) मूल (गोड, वृक्ष) जिनमें एक सहस्र (फल लगते थे; का) प्रदाता (उसी) धर्मात्मा ने गोवर्धन तथा त्रिरश्मि पर्वतों पर यह गुहा तथा जलाशय बनवाया। भट्टारक (नहपान ? ) के आदेश से, मैं वर्षा ऋतु में मलवों के द्वारा अवरुद्ध (घेरे गये) उत्तमभद्रक (मथुरा को उत्तम दत्त ? - उत्तमभद्रों के अधिपति) को छुड़ाने (मुक्त करने) के लिये
गया।
और वे मालव (उषवदात की सेना की) हुंकार से (ही) भाग गये और उत्तमभद्रक क्षत्रिय ( को घेरने वाले) सभी मालवों को (ऋषभदत्त ने ) बन्दी बना लिया। तब मैं पुष्कर गया। और वहां मैंने स्नान किया तथा तीन सहस्र
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