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कनिष्क द्वितीय का आर शिलालेख'
आर-अटक से 10 मील दूर ग्राम (पाकिस्तान),
भाषा - प्राकृत,
लिपि - खरोष्ठी, वर्ष 41 ( 119 ई० )
महरजस रजतिरजस देवपु( त्रस ) (क) इ ( स ) रस व( झि )ष्यपुत्रस कनिष्कस संवत्सर एकचप (रि) -
(शए) सं0 20 (+) 20 (+) । जेठस मसस दिव (से) 1 इ ( शं) दिवस-क्षुणमि ख( दे )
(कुपे) दषव्हरेन पौषपुरिअ पुत्रण मतर पितरण पुय(ए) (अत्म)णस सभर्य ( स ) ( स ) पुत्रस' अनुग्रहर्थए सर्व (सपण जति (षु) (हि) तए । इमां च लिखितो म( धु) ...( 1 )
महाराज राजातिराज देवपुत्र केसर (रोमन सम्राटों का विरुद) वासिष्कपुत्र कनिष्क के
41 वें वर्ष के ज्येष्ठ मास के प्रथम दिन - इस दिन के (शुभ) मुहूर्त में दाषपरन्ने कुआ खोदा
पौषपुरिक के पुत्रों तथा माता-पिता की पूजा के लिये ( सम्मान में)
पत्नी एवं पुत्र सहित हिरण्य के अनुग्रह (लाभ) के लिये, सारे प्राणियों के जन्मजन्मान्तर में होने वाले लाभ अथवा रक्षा के लिये । इस लेख को म (धु) .ने लिखा।
एपि० इ० 1908, पृ० 58, ए०३० 22, पृ० 130 कार्पस, 2, पृ० 165 अवलेश्वर लेख में भी ऐसा ही पाठ है
7. भगवता आपुरा
8.
तापुसेन स पुतस 9. सभायस
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