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खाखेल का हाथीगुम्फा लेख
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पर जिन्हें आश्रय की कमी है ऐसे अर्हतों को वर्षा भर विश्राम तथा निर्वाह के लिये, राजपोषित व्रताचरण करने वालों तथा वर्षभर आश्रित रहने वालों की पूजामें लीन उपासक खारवेल की लक्ष्मी से जीव तथा देह को आश्रय देने वाली गुफा खोदी गयी। श्रमणों के सत्कार में (निरत खारवेल ने) सारी दिशाओं के प्रतिष्ठित ज्ञानी, तपस्वी, संधि को अर्हत् के आसन (पीठ ) के पास पर्वत के ऊपर, श्रेष्ठ आकार में उठायी (बनायी) गयी, अनेक योजन से लायी गयी....शिलाओं
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चौराहे (चौंतरे) पर 105 सहस्र (मुद्राओं) से नीलम-जडा स्तम्भ खड़ा करवाया। मुख्य कला सहित 64 अङ्ग शान्ति की तुरही बजाने लगे। वह क्षेमराज, वृद्ध (उन्नत) राज, वह भिक्षुराज, धर्मराज कल्याण को देखता, सुनता तथा अनुभव करता हुआ।----- विशिष्ट गुणों में कुशल, सारे सम्प्रदायों का पूजक, सारे देवालयों का संस्कार (सुधार) करवाने वाला, अपराजेय सैन्यसमूह बल से सम्पन्न, चक्रधर (राजसमूह को धारण करने वाला), गुप्तचक्र (सुरक्षित राजमण्डल) प्रवृत्त-चक्र (अप्रतिहत शासन), राजर्षि (चेदिराज) वसु कुल से निकला हुआ महाविजयी राजा श्री खारवेल है।
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