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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/30 दार्शनिक संगति की तब तक पूर्ण रक्षा नहीं कर सकते हैं, जब तक कि झेनोफोन द्वारा उनके नाम से प्रस्तुत सिद्धांतों को केवल कामचलाऊ तथा अस्थाई नहीं मान लेते हैं, फिर भी नैतिक सिद्धांत के इतिहास की दृष्टि से सुकरात के विचार विधायक एवं महत्वपूर्ण हैं। वे विधायक निष्कर्ष न केवल उनकी अज्ञान की स्वीकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं, वरन् उनकी जनसाधारण के मतों की जिरह को समझ पाना भी आसान बना देते हैं। सुकरात के अनुसार मनुष्यों को अपने वास्तविक शुभ का अज्ञान ही उनके दुराचरण का मूलभूत कारण है। सुकरात के सभी विधायक निष्कर्ष उनकी इसी गम्भीर धारणा में निहित हैं या शुभ के ज्ञान की प्रभाव क्षमता के उच्चतम मूल्यांकन से निकाले गए हैं, यद्यपि शुभ के ज्ञान की प्रभाव क्षमता का पता लगा लेना कठिन है। यदि सुकरात के उन स्वाभाविक प्रश्नों का यह उत्तर दिया जाए कि न्याय और पवित्रता के स्वरूप को हम जानते तो हैं, किंतु बता नहीं सकते हैं, तो वे कहेंगे कि फिर न्याय और पवित्रता है के स्वरूप के सम्बंध में हमेशा से विचार क्यों होता रहा? सुकरात का कहना है कि न्याय और पवित्रता का सच्चा ज्ञान तो इन विवादों का निराकरण कर देगा और मनुष्यों के नैतिक निर्णयों तथा आचरण में एकरूपता ला देगा। निःसंदेह हमारे लिए मनुष्य के न्याय (उचित) सम्बंधी अज्ञान को ही उसके अनैतिक आचरण का एकमात्र कारण मान लेना बेतुका विरोधाभास है और यह संभव है कि ग्रीक मानस को भी यह दृष्टिकोण विरोधाभास युक्त लगा होगा, किंतु यदि हम न केवल सुकरात की, वरन् सामान्यतया प्राचीन दर्शन की स्थिति.को समझने का प्रयास करें, तो हमें यह मानना पड़ेगा कि यह विरोधाभास निम्न आभासी स्वयंसिद्धियों का लगभग अकाट्य निष्कर्ष है। जैसे प्रत्येक व्यक्ति अपना हित (शुभ) चाहता है और यदि वह उसे प्राप्त कर सकता है, तो प्राप्त करता है। शायद ही कोई भी विरोधी इसे चुनौती देने का साहस कर सकेगा। वह इस बात से भी इंकार नहीं कर सकेगा कि न्यायशीलता और सद्गुण शुभ हैं तथा सभी शुभों में सर्वोत्तम भी हैं। उसके लिए यह अस्वीकार करना भी कठिन होगा कि जो लोग यह जानते हैं कि न्याय और उचित कर्म कौन से हैं वे उनके अतिरिक्त अन्य किसी कर्म को पसंद भी नहीं करेंगे और जो न्याय और उचित कर्मों को नहीं जानते हैं, वे चाहते हुए भी उन्हें नहीं कर सकेंगे। इससे हम सीधे सुकरात के उस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि न्याय और सभी सद्गुण प्रज्ञा या शुभ के ज्ञान में निहित हैं।
आधुनिक विचारकों की दृष्टि में सद्गुण सम्बंधी यह दृष्टिकोण नैतिक