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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/128 दण्डों की वैधता का समर्थन करते हुए पाते हैं। उसने सुसमाचार (बाइबिल) के परामर्शों
और आदेशों के पूर्वोक्त अंतर को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भाग लिया और इस प्रकार ब्रह्मचर्य और आत्मनिरोध के अंध समर्थकों के आक्रमणों से वैवाहिक जीवन
और प्राकृतिक शुभों के संयत उपभोग की रक्षा की, यद्यपि वह पाप के दूषण से बचने के लिए ब्रह्मचर्य और आत्मसंयम की पद्धति की श्रेष्ठता को स्वीकार करता है। ऐम्ब्रोस (340-397 ई.)
____ आगस्टिन के दर्शन के प्लेटो की सद्गुणों की सूची के ईसाईकरण का प्रयास सम्भवतया उनके गुरु एम्ब्रोस के प्रभाव के कारण था। उनके ग्रंथ डी आफीकस (D-officus) में पहली बार ईसा-पूर्व की नीतिवेत्ता से ली गई योजना के आधार पर ईसाई कर्तव्यों का व्यवस्थित विवेचन पाते हैं। यहाँ एम्ब्रोस के चार मुख्य सद्गुणों के विवरण की तुलना उनकी सीसरो में दी गई रूपरेखा से करना रुचिकर होगा। एम्ब्रोस का चार सद्गुणों का यह विवरण सामान्य विशेष के लिए एक आदर्श बन कर रहा है। ईसाई प्रज्ञा का विमर्शात्मक स्वरूप वस्तुतः धार्मिक (धर्मशास्त्रीय) है। उसका मुख्य विषय ईश्वर है, जिसे वह सर्वोच्च सत्य मानती है और इस प्रकार वह श्रद्धा पर आधारित है। ईसाई सहनशीलता वस्तुतः सद्भाग्य और दुर्भाग्य के प्रलोभनों के प्रति दृढ़ता के साथ खड़ा होना है अथवा निर्दयता के प्रति बिना भौतिक हथियारों के सतत् संघर्ष करते रहने में दृढ़ता रखना है, यद्यपि एम्ब्रोस पुराने करार' को दृष्टिगत रखते हुए इस सद्गुण के सामरिक अर्थसाहस को पूर्णतया समाप्त नहीं करते हैं। संयम
और मिताचार का अर्थ सभी आचरणों में मात्रा के औचित्यं को रखना है। यह अर्थ तो सिसरों के ग्रंथ में भी मिलता है, किंतु इसे विनम्रता के नए सद्गुण के साथ मिश्रित कर इसके अर्थ को संशोधित किया गया है। अंत में, ईसाई न्याय की व्याख्या में सभी मनुष्यों के हितों की स्वाभाविक एकरूपता के स्टोइक सिद्धांत को सु-समाचार के लोकोपकार की पूर्ण ऊंचाई तक विकसित किया गया है। मनुष्यों को यह स्मरण दिलाया गया कि उन्हें ईश्वर के द्वारा निर्मित इस जगत् में सभी का सामूहिक अधिकार है, साथ ही उन्हें यह भी आदेश दिया गया है कि वे अपने साधनों का सामूहिक हितों के लिए उपयोग करे और दूसरों को सहर्ष उनका उपयोग करने दे। सम्पत्ति का अपव्यय नहीं करे, किंतु यदि सम्पत्ति के दान करने से कोई गरीब हो जाता है, तो शर्मिंदा न हो। हम देखेंगे कि एम्ब्रोस ईसाई धर्म में इन विभिन्न सद्गुणों की अवियोज्यता पर बल देते हैं, यद्यपि वे आगस्टिन के समान उन्हें ईश्वर-प्रेम के एक केन्द्रीय तत्त्व के अंतर्गत