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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 253 तर्क अधिक पूर्ण रूप से ई-वन- हार्टमेन नामक एक आधुनिक लेखक के द्वारा विकसित हुआ है। हार्टमेन अपनी बहुत कुछ मौलिकता के होते हुए भी मोटे तौर से शापन हावर के शिष्य माने जा सकते हैं। हार्टमेन शापन हावर के साथ यह मानते हैं कि इस यथार्थ दुनिया का अस्तित्व अचेतन संकल्प (इच्छा) के अबौद्धिक कार्य का परिणाम है, लेकिन हार्टमेन शापन हावर के इस सिद्धांत को अस्वीकार करता है कि सभी सुख केवल दुःख से मुक्ति हैं, लेकिन वह यह मानता है कि दुःखों की समाप्ति से होने वाला सुख उन सुखों की अपेक्षा, जो कि इस प्रकार दुःखों से प्रतिबंधित नहीं हैं, अधिक प्रबल होता है, यद्यपि उन दुःखों की अपेक्षा, जो कि इस दुःख की समाप्ति से होने वाले सुख को प्रतिबंधित होता है, बहुत ही कम तीव्र होता है, जैसे कि किसी प्रकार की भावना के दीर्घकाल तक बने रहने के कारण उत्पन्न स्नायविक - थकान दुःख की दुःखतता को बढ़ाती है और सुख की सुखदता को कम करती है। संतोष सदैव ही क्षणिक् होता है, जबकि असंतोष तब तक बना रहता है, जब तक कि इच्छा बनी रहती है। मानवीय-प्रयासों की मुख्य दिशाओं का सर्वेक्षण करते हुए हार्टमेन कहता है कि अनेक संवेग, जैसे ईर्ष्या, कुढ़न, पश्चाताप और घृणा लगभग पूर्णतया दुःखद है। स्वास्थ्य, यौवन, स्वतंत्रता आदि जीवन की अनेक स्थितियों का मूल्यांकन केवल किन्हीं दुःखों की अनुपस्थिति के आधार पर ही होता है, जबकि प्रजनन एवं विवाह ऐसी बुराईयां है, जो कि किन्हीं बड़ी बुराइयों से बचने के लिए स्वीकार की जाती है और यह कि समृद्धि, शक्ति और सम्मान के सामान्य प्रयास तब तक भ्रांत है, जब तक कि उनके विषयों को परम साध्य मान लिया जाता है, साथ ही सुख, संतान, प्रेम, महत्त्वाकांक्षा, सहानुभूति आदि की ओर प्रवृत्त करने वाले अनेक आवेग अपने कर्त्ता को दुःख की अपेक्षा अधिक दुःख की ओर ही ले जाते हैं, जबकि विचार करने पर हम देखते हैं कि दूसरे अनेक आवेग कर्त्ता के समान ही कर्म, कर्त्ता को आखिरकार एक स्पष्ट प्रबल दुःख ही प्रदान करते हैं। अंत में, कला और विज्ञान की सर्जना के कार्य, जो अधिक सुख देते हैं, किंतु केवल थोड़े-से लोग ही उनमें वस्तुतः रस लेने की योग्यता रखते हैं, इन थोड़े-से लोगों की यह उच्च प्रज्ञा भी इन्हें दूसरे स्रोतों के द्वारा दुःख ही प्रदान करती है।
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ये सब विचार हार्टमेन को इस असंदिग्ध निष्कर्ष की ओर ले जाते हैं कि न सम्पूर्ण विश्व की दृष्टि से सुख की अपेक्षा दुःख अधिक है, अपितु जिनकी परिस्थितियां बहुत ही अनुकूल हैं, ऐसे व्यक्तियों के लिए भी दुःख की मात्रा सुख की