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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/251 हेगेल की दृष्टि में मानव-जाति का इतिहास राजनीतिक-संगठनों के विभिन्न रूपों के द्वारा स्वतंत्र चेतना के अनिवार्य विकास का इतिहास है। उन राजनीतिक-संगठनों के विभिन्न रूपों में सर्वप्रथम प्राचीन राजतंत्र है, जिसमें स्वतंत्रता केवल राज्य की प्राप्त होती है। दूसरा रूप ग्रीक-रोमन-प्रजातंत्रों का है, जिसमें गुलामी की प्रथा को मान्य रखते हुए स्वतंत्र नागरिकों की एक चुनी हुई निकाय शासन करती थी, जबकि अंत में पतनशील रोमन साम्राज्य पर ट्यूयोनिक (जर्मन) हमलों के कारण निर्मित समाज आते हैं, जिनमें स्वतंत्रता को समाज के सभी सदस्यों का नैसर्गिक-अधिकार माना जाता है। हेगेल के इतिहास-दर्शन और दर्शन के इतिहास में विवेचित व्याख्यानों ने उसके इस विशिष्ट सम्प्रदाय की सीमाओं को काफी व्यापक बना दिया। व्यवहार के सिद्धांतों के सभी क्षेत्रों में ऐतिहासिक पद्धति का वर्तमान महत्त्व अपने प्रभाव की दृष्टि से कुछ कम नहीं है। जर्मन-निराशावाद
हमने पहले यह देखा था कि स्पेंसर जैसे लेखकों के विकासवादी-आज्ञावाद के विरोध को सम्पूर्ण प्राणीय-जीवन और उस प्राणीय-जीवन की उच्चतम विकसित अवस्था मानव-जीवन के संबंध में एक निराशावादी-दृष्टिकोण आधुनिक इंग्लिशविचारों में अस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुआ था। एक दूसरे प्रकार के विकासवादीआशावाद का ऐसा ही विरोध शापनहावर के निराशावाद के रूप में प्रकट हुआ था, जो कि साधारणतया कांट के परवर्ती प्रत्ययवाद से और विशेष रूप से हेगेल के दर्शन से सम्बंधित है। शापनहावर (1788-1860)
शापनहावर कांट का यह सिद्धांत स्वीकार करता है कि हमारी अनुभूति का यह वस्तुनिष्ठ जगत् पूर्णरूपेण मानवीय-संवेदनशीलता के प्रदत्तों एवं अनुभवकर्ता मनस के नियमों से निर्मित है, फिर भी शापन हावर हमारी संवेदनशीलता को प्रभावित करने वाले वस्तु-निजरूप की कांट की धारणा को एक भिन्न दिशा में ले जाता है। उसके दृष्टिकोण में यह वह संकल्प है, जो कि प्रत्येक वस्तु का और सभी वस्तुओं का आंतरिक-सारतत्त्व है। यह संकल्प अपने स्वभाव के द्वारा यांत्रिक रूप अपनी अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करता है और अपने-आप को विषयनिष्ठ के रूप में प्रस्तुत करता है। जड़-जगत् की यांत्रिक और रासायनिक-शक्तियां, निम्नतम से लेकर उच्चतम-श्रेणी तक के जीवित-प्राणियों के कार्यकलाप इसी विषयनिष्ठता के