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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/308 है। नीतिशास्त्र का सम्भवतया सबसे महत्त्वपूर्ण और श्रम-साध्य कार्य यही है। यह स्पष्ट है कि इसकी पूर्ति के लिए विभिन्न जातियों, विभिन्न कालों और विभिन्न जलवायुओं के नैतिक-विचारों (निर्णयों) का व्यापक ज्ञान और उन परिस्थितियों का व्यापक ज्ञान आवश्यक है, जिनमें उन विचारों (निर्णयों) का जन्म हुआ, साथ ही, यह कार्य इन सबके मूलभूत निहितार्थों के वास्तविक समीक्षात्मक-परीक्षण के साथ जुड़ा हुआ है। नैतिक-मूल्यों का सर्वेक्षण एक ऐसे अवयवीतंत्र (आंगिक-निकाय) या तंत्रों (निकायों) का निर्देश करेगा, जिसमें इन सभी मूल्यों का स्थान रहेगा। किसी भी समय विशेष में ऐसा तंत्र अनिवार्य रूप से अपूर्ण ही होगा, क्योंकि जीवनप्रक्रिया में नए गुणों (मूल्यों) की अनुभूति होगी और विकासशील सामाजिक-इकाई उनको ग्रहण करती रहेगी।
नीतिशास्त्र से भिन्न नीति-दर्शन का कार्य नैतिकता के लिए किसी आदर्श या आधार की खोज नहीं है, लेकिन अनुभवों की समग्रता में नैतिकता के स्थान की खोज है (नैतिक आदर्श और नैतिकता का आधार -दोनों ही केवल स्वयं नैतिकता में ही पाए जा सकते हैं), जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है। यह बहुत कछ इस बात में निहित है कि नैतिक-आबंध (बाध्यता) के आधार की समस्या, जो कि पहले नैतिक-विवेचनाओं का केंद्रीय-विषय थी, अब परिपार्श्व में चली गई है
और उन आनुवांशिक-प्रश्नों से पूर्णतया स्वतंत्र मूल्यों की खोज को हाथ में ले लिया गया है, जैसे कि मूल्यों का उत्पादन कौन करता है और कौन उनका उपभोग करता है। प्रारम्भिक-सिद्धांतों ने स्वयं नैतिक-अनुभवों के बाहर ईश्वर के संकल्प में, राज्य की प्रभुसत्ता में या बुद्धि के निरपेक्ष आदेश में नैतिक-आबंध के आधार की खोज का प्रयास किया था। इस सरल सत्य को अब स्वीकार कर लिया गया है कि शुभ के लिए प्रयास करने के नैतिक-आबंध का आधार शुभ के स्वयं के स्वरूप में ही पाया जाता है। इस प्रकार, समुचित रूप से यह माना जा सकता है कि नीतिशास्त्र की समकालीन गतिविधियां उसे नि:तिक-नीति की इतर धारणाओं के प्रभुत्व से मुक्ति दिलाने की दिशा में कार्यरत हैं, अब नीतिशास्त्र अपनी प्रक्रिया में अधिक विश्लेषणात्मक हो गया है। यद्यपि नीतिशास्त्र अब भी उसे प्राप्त नहीं कर पाया है, जिसकी खोज का वचन देता है। वह केवल जीवन के सामान्य दृष्टिकोण और नैतिक-मूल्यों के विशेष दृष्टिकोण को अधिक व्यापक और समृद्ध रूप में प्राप्त कर पाया है, कुछ समय के लिए उन विशेष स्वतः शुभों की एकता और उनके संगठन की दिशा में आवश्यक गतिविधियों