Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 311
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/309 का अभाव प्रतीत हो सकता है, जिनकी ओर इसका ध्यान केंद्रित है। समकालीन नीति-दर्शन किसी भी प्रकार की ऐसी सामान्य धारणा का विरोधी है, जो कि किसी भी रूप में इसकी क्रियाशीलता में बाधा डाल सकती है और उसे मूल्यों की सतत रूप से वर्द्धमान संपदा की दिशा में प्रयासशील होते हुए रोक सकती नीतिशास्त्र के अध्ययन का तत्त्वमीमांसीय पूर्व धारणाओं से मुक्त हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि इस आधार पर यह सभी तत्त्वमीमांसा-संदर्भो को छोड़ सकती है और सभी तात्त्विक-निहितार्थों से बच सकती है, लेकिन पिछले पचास वर्षों की अनुभवात्मक और विश्लेषणात्मक-खोज के कारण इन निहितार्थों की खोज के प्रति एक सामान्य उदासीनता देखी गई है, जबकि मूर जैसे कुछ लेखक शुभ को सामान्य के समान ही एक विधेय मानते हैं। मूर ने यह कहकर कि सामान्य व्यष्टि (विशेष) में निहित है, उनकी तत्त्वमीमांसीय-स्थिति पर रहस्यात्मकता का परदा डाल दिया है। मूल्यों के सम्बंध में संगठन के स्वरूप पर अभी तक जितना विचार किया गया है, उसकी अपेक्षा अधिक विचार की आवश्यकता है। अभी कुछ पच्चीस वर्षों तक प्रारम्भिक-सम्प्रत्यात्मक-दृष्टिकोण का अस्तित्व बना रह सकता है। इस प्रकार विलबर, मार्शल, अरबन अपने ग्रंथ मूल्यांकन, उसका स्वरूप एवं नियम (1909) में यह प्रश्न पूछता है कि कम-से-कम चिंतन की दृष्टि से क्या उन अनुभवात्मक-साध्यों में कुछ सारभूत आंतरिक-मूल्यों (स्वतः मूल्यों) की तार्किक अवधारणा नहीं है, जिनसे एक चरम पूर्व अवधारणा के रूप में अनेक निर्णायकस्थितियों में अंतर्निहित मान्यता एवं अनुभवात्मक उद्देश्यों को तार्किक-रूप में निगमित किया जा सकता है। यह बात सामान्यतया एक तार्किक-ढंग के संगठन को सूचित करती है। यह विचार कि मूल्य कुछ ऐसे लक्षणों के द्वारा संगठित है, जो कि सभी में सामान्यतया उपस्थित रहते हैं, एक आकारिक-बुद्धिपरतावाद को बनाए रख सकता है। अब जिस एकता को जाना गया है, वह एक दूसरे प्रकार की है। यह एक संगठन है, यह भिन्न-भिन्न विशेषों को उस एक इकाई (समग्रता) के रूप में समन्वित करना है, जो कि एक क्रमबद्ध संरचना या अवयवी-संरचना है। इसे अमूर्त चिंतन के द्वारा उतना नहीं पाया जा सकता, जितना कि व्यावहारिक-संगठन की पद्धति है। वह सिद्धांत, जो ऐसे व्यावहारिक-प्रयासों के लिए मार्गदर्शन दे सकता है, एक अनुभूत संगति है, न कि संगठित होने वाले सभी शुभों के गुणों या लक्षणों में समान रूप से उपस्थित किसी

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