Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 308
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/306 उसे ले गया है। यह आचरण (व्यवहार) पर शासन करने के लिए बुद्धि के दावे का प्रस्तुतिकरण है। बुद्धि अनुभूतियों के आंतरिक-सम्बंधों से सम्बंधित है, लेकिन जीवन एक प्रक्रिया है और इस प्रकार, बुद्धि का कार्य कभी पूरा नहीं होता है। सत्य को सतत रूप से व्यापक बनाया जाता है और गलतियों को दूर किया जाता है। शुभ-भावना और अनुभव की एक संगति है। बौद्धिक-शुभ जहां तक भावनाओं को प्रभावित करता है, सभी संवेदनशील प्राणियों के सभी अनुभवों की एक संगति का दावा करता है। इस बौद्धिक-शुभ में मन की स्वयं से और बाह्य-विश्व से एक संगति रहती है। इस बौद्धिक-व्यवस्था का यह सार्वभौमवाद व्यक्ति को समाहार भी करता है, लेकिन उसका अतिक्रमण भी करता है। मूलभूत नैतिक-सिद्धांत सर्वव्यापक संगति की ओर एक अर्थात् स्थायी शक्तियों का एक ऐसा अधिक पूर्ण संगठन और समायोजन है, जो कि विश्व की गति की अच्छाई के लिए बनाया गया है। समकालीन नीतिशास्त्र के लक्षण नीतिशास्त्र के जिन सिद्धांतों का इस अध्याय में सर्वेक्षण किया गया है, वे बहुत कुछ रूपों में व्यावहारिक-जीवन की परिवर्तित और परिवर्तनशील अभिवृत्तियों और आदर्शों को बताते हैं। यद्यपि यह कहना सम्भव नहीं है कि यह अवस्था सभी मूल्यों के मूल्यांतरण की स्थिति है या हो रही है, फिर भी, इसने पारम्परिक-नैतिक-आदर्शों और आचरण की विधाओं को निश्चित ही ललकारा है। वैयक्तिक-अनुभवों, जैसे कि वे हैं, के महत्त्व विचार करने की दृष्टि से यह प्रक्रिया सभी लोगों पर बंधनकारक ऐसे किसी सामान्य सिद्धांत की स्वीकृति से दूर है। व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन अनुभवों पर विशेष विधाओं के अनुसार विचार किया गया है, लेकिन विशेषों के मूल्य को एक ऐसे आदर्श घटक के रूप में अनिवार्यतया नहीं विचारा गया है, जो कि सभी में समान रूप से रहा हुआ है। सामाजिक-दबाव के बावजूद भी एकल व्यक्ति के जीवन पर पुनः बल दिया जा रहा है। कोई भी बौद्धिक एवं अपरिहार्य आबंध प्रतीत नहीं होता है, जिसके आधार पर इस पीढ़ी के व्यक्ति को अपने स्वयं के आत्मत्याग के लिए वर्तमान युग के सम्भावित अग्रिम विकास के दूरस्थ परिणामों की उपलब्धि को अपना साध्य बनाना चाहिए। इसी प्रकार, इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि ऐसा कोई बौद्धिक या अपरिहार्य आबंध (दायित्व) है, जिसके आधार पर व्यक्ति स्वयं के हित का व्यापक सामाजिकइकाई के अनिश्चित हित के हेतु समर्पण करे। समाज में प्रचलित नैतिक-नियमों का

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