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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/303 वह वस्तुतः सतर्हतया विचार और संकल्प की एकता है। यह जीवन है, जहां तक कि इसकी अपने-आप की एकता के रूप में अपने गांभीर्य के साथ साक्षात्कार किया जाता है। यदि इसे सतत रूप से विकासशील सृष्टि एवं प्रगति माना जाता है, तो यह स्वतंत्रता है। नैतिक-व्यक्ति में समष्टि के लिए सक्रियता की चेतना होती है। क्रोसे भावनाओं की अपनी विवेचनाओं के द्वारा प्रारम्भ में ही अपनी-अपनी असंगति को प्रकट कर देता है। वे लोग, जो दर्शन में भावनाओं को स्थान देते हैं, बहुत कुछ रूप में अपनी स्थिति को हास्यास्पद बना देते हैं। यद्यपि क्रोसे हमें भावना-शून्यता अथवा अतिभावुकता की- दोनों ही भ्रांतियों से बचने के लिए सजग करता है। वह स्वयं भी तथाकथित राष्ट्रप्रेम, ईश्वर-प्रेम और मानव प्रेम की भावनाओं में बहुत ही कम अंतर स्पष्ट कर पाएगा, लेकिन उसका दर्शन कौन-से मूल्यों को स्वीकार कर पाया है? अंत में, उसका स्वयं का दृष्टिकोण भी भावशून्यता के द्वेष से युक्त प्रतीत होता है। डिवी (जन्म 1859 ई.)
अस्तित्व एवं अनुभव के गत्यात्मक-स्वरूप पर जान डिवी के द्वारा भी इसी प्रकार का बल दिया गया है। डिवी अपने अनेकों ग्रंथों में ज्ञान की सभी शाखाओं की दृष्टि से अपरिवर्तनशीलता के प्रत्यय का विरोध करता है। ऐसा उसने स्वतंत्रता और स्वेच्छा के प्रत्ययों की स्वीकृति के कारण किया है। न तो ज्ञान किसी अतिक्रामी अपरिवर्तनशील सत्ता को अभिव्यक्त करता है और न नैतिक-जीवन ही एक शाश्वत अपरिवर्तनशील आदेश है। बुद्धि के द्वारा एक गतिशील और अपरिवर्तनीय साध्य का परित्याग नैतिकता, स्वतंत्रता और प्रगतिशील नीति-विज्ञान एवं पदार्थविज्ञान की एक आवश्यक पूर्व शर्त थी। परोक्ष और अमूर्त बने-बनाए मूल्यों से विज्ञान को मुक्ति दिलाना, वर्तमान में अधिक विशिष्ट मूल्यों के निर्माण एवं स्वीकृति के लिए उसे सक्षम बनाने की दृष्टि से आवश्यक था। डिवी कहता है कि भूतकाल में नीतिशास्त्र के विविध सम्प्रदायों ने एक एकल-अपरिवर्तनीय परम शुभ की धारणा के अधीन होकर कार्य किया था, किंतु हमें परिवर्तनीय, गतिशील एवं व्यक्तिगत शुभों और साध्यों की अनेकता की धारणा के लिए एक अपरिवर्तनीय अंतिम शुभ के प्रत्यय का परित्याग करना होगा। नैतिक-मूल्यों को निगमन के द्वारा सामान्यों से प्राप्त नहीं किया जा सकता, अपितु नैतिक-जीवन विशिष्ट परिस्थितियों की व्यापक-खोज पर, विश्लेषण पर, कार्य के संभावित प्रकारों के परिणामों के अनुमान पर और जब तक ठन अपेक्षित परिणामों की वास्तविक परिणामों के साथ तुलना नहीं हो जाती, तब