________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/258 उद्धृत किया है, उससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि प्राकृतिक नियमों के संदर्भ में वह उसके दृष्टिकोण से मूलतः सहमत है। 14. यह ध्यान में रखना होगा कि क्लार्क की आलोचना वस्तुतः केवल हाव्स के विरुद्ध थी। जहां तक मैं जानता हूं, उसने कभी भी लाक से अपना सम्बंध स्पष्ट करने का प्रयास नहीं किया। 15. जिस समुचितता या संगति को वह यहां स्पष्ट करने का प्रयास करता है, वह संगति (अ) प्रशंसा (Congruvity), भय आशा और दूसरी मानवीय भावनाओं तथा (ब) शाश्वतता, अनंतता, सर्वज्ञता, शक्ति, न्यायशीलता और दयालुता आदि के ईश्वरीय गुणों के बीच है, किंतु मानवीय संवेगों और ईश्वरीय गुणों के बीच यह
अनिश्चित गुणात्मक अनुरूपता उस मात्रात्मक संबंध के समान नहीं हो सकती, जिसे हम गणितीय समानता के पदों के बीच पाते हैं। 16. जैसा कि मैने अन्यत्र बताया है कि क्लार्क के द्वारा प्रस्तुत यह सिद्धांत पुनरोक्ति दोष से मुक्त नहीं है (देखिए-मेथड्स आफ इथिक्स, खण्ड 3, अध्याय 13, अनुभाग 4), किंतु मैं मानता हूं कि यह आक्षेप उसके तर्कवाक्य के स्वरूप के सम्बंध में है, विषयवस्तु के सम्बंध में नहीं । मैं सोचता हूं कि क्लार्क के उन सिद्धांतों की पूर्णता के प्रति अधिक तीव्र आक्षेप यह है कि समानता और परोपकार के वे नियम, जिन्हें वह प्रस्तुत करता है, उसके स्वतःप्रमाण्य नैतिक सत्य के सामान्य स्वरूप को मुश्किल से ही बता पाते है, क्योंकि इन नियमों के द्वारा सोचे गए सम्बंध समानता के सम्बंध हैं, जबकि नैतिक सत्य के सामान्य स्वरूप के प्रस्तुतिकरण के पश्चात् हम उससे जो अपेक्षा करते हैं और व्यावहारिक उपयोगों के लिए जिसे बताने की आवश्यकता है, वह यह कि व्यक्तियों की परिस्थिति और उनके सम्बंधों के अनुरूप उनके व्यवहार में कैसी भिन्नता होती है। 17. यह ग्रंथ सर्वप्रथम 1699 ई. में मुद्रित हुआ था, किंतु केरेक्टरस्टिक्स के दूसरे खंड के रूप में सन् 1711 ई. में इसके पुनः प्रकाशन के पश्चात् ही इसके प्रभाव को माना जा सकता है। 18. अपने अधिकांश तर्कों में शेफ्ट्सबरी व्यक्ति के शुभ की सुखवादी व्याख्या का समानार्थी मानता है। किंतु यह ध्यान में रखना होगा कि शुभ सम्बंधी उसकी धारणा सुखवादी नहीं है। प्रथमतया हित या शुभ का अर्थ एक मनुष्य की सम्यक् (उचित) अवस्था है, जो कि उसे स्वभावतः प्राप्त है या जिसे उसके द्वारा आंतरिक