Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 292
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/290 को निम्न सामान्य नियम के रूप में प्रस्तुत किया है। सभी ऐच्छिक-कार्यों की शक्ति और उनके लक्ष्य आनंद की सापेक्षिक-अभिवृद्धि पर निर्भर होते हैं, जिसे वे सम्बंधित व्यक्ति के संवेदनशील मनोविन्यास की दृष्टि से अपने को चेतना से प्रवेश के द्वारा उत्पन्न करते हैं और चेतना में अपने स्थिति-काल से बने रहते हैं। आनंद को सुखवादीसिद्धांतों के सुख के अर्थ में नहीं समझना चाहिए। किसी वस्तु की इच्छा केवल इच्छा के लिए अथवा (सुख के अतिरिक्त) किसी अन्य साध्य के लिए भी हो सकती है। इस प्रकार, इच्छा में आंतरिक-मूल्य और बाह्य-मूल्य का विभेद रहता है। यद्यपि मूल्यों को आंतरिक-मूल्य (स्वतः-मूल्य) या बाह्य-मूल्य (परतः मूल्य) के रूप में सुनिश्चित ढंग से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि वही विषय उसी समय आंतरिकमूल्य और बाह्य-मूल्य - दोनों की ही दृष्टि से मूल्यवान् हो सकता है, अथवा एक समय वह आंतरिक मूल्य वाला हो सकता है और दूसरे समय बाह्य-मूल्य वाला हो सकता है। मूल्यात्मक-वस्तुओं के दो व्यापक वर्ग हैं - 1. मानवीय-मूल्य और 2. पशुओं और वस्तुओं का गुण एवं कार्यक्षमता। एहरन फेल्स, नैतिक-पंक्षों के स्वभाव (गुण) पर विचार करने की अपनी प्रारम्भिक-पद्धति है, उनके निर्देश (विस्तार) के प्रश्न की ओर मुड़ता है, अर्थात् उन विषयों की ओर, जिन पर इन नैतिक-पदों को प्रामाणिकता के साथ लागू किया जा सकता है। कार्यों पर लागू होने वाले नैतिकआदेशों को उन मनोभावों के नैतिक-मूल्यांकन, जिनसे कि वे उत्पन्न होते हैं, अलग किया जाना चाहिए। नैतिक-मूल्यांकन अपने उत्कृष्ट रूप में वैयक्तिक-निर्णय नहीं हैं, अपितु वे सम्पूर्ण समाज के सामूहिक-निर्णय हैं। अपने मूल्यांकन को पाश्चात्य और मुख्यतया ईसाई दृष्टिकोण तक सीमित रखते हुए वह पाता है कि नैतिक-आदर्श केवल मानव-जाति के प्रति सामान्य प्रेम नहीं है, यद्यपि यह प्रेम उसका केंद्रीय एवं प्रमुख तत्त्व हो सकता है। सदाचार, निष्ठा, ईमानदारी, कर्त्तव्यपरायणता, सच्चाई, आत्म-गौरव, उदारता, ब्रह्मचर्य, संयम, कर्मठता और कार्यप्रेम - ये सभी, जिसका कि नैतिक-दृष्टि से सर्वाधिक मूल्यांकन किया जाता है, इच्छा की प्रवृत्ति के और स्वतः ही भावना के विषय हैं। वे या तो प्रेम के अलावा इच्छा के दृष्टिकोण से परोपकार के किसी रूप को निरूपित करते हैं या अन्यथा इनका दूसरे प्राणियों के प्रति प्रेम से कोई सम्बंध ही नहीं है। मूर (1873) केंद्रीय-नैतिक-मूल्य की समस्या का और इस प्रकार नीतिशास्त्र के मौलिक

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