Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 302
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/300 और उन साध्यों पर, जिनकी ओर वे गतिशील होंगी, अवश्य ही निर्भर होंगी। यद्यपि क्रियाओं का एक लक्षण ऐसा भी होता है, जो कुछ सामान्य दृष्टिकोण और जीवनपद्धति पर आधारित होता है और जो एक विशेष विश्व-दृष्टि को उत्पन्न करता है या उस विश्व-दृष्टि से सम्बंधित होता है। उसके अनेक ग्रंथों में से मानक ग्रंथ उसकी पद्धति और निष्कर्षों को अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करता है। नैतिक-संघर्ष आखिरकार कार्यों के विशेष सम्भावित रूपों के बीच नहीं, अपितु जीवन जीने के विभिन्न ढंगों के बीच है। . जीवन जीने के विविध ढंग उन बातों में इतने अधिक भिन्न नहीं होते, जिन्हें वे स्वीकार करते हैं, जितने कि उन बातों में भिन्न होते हैं, जिन्हें वे उपेक्षित करते हैं। यूकेन जीवन जीने के प्रचलित विभिन्न ढंगों की अपूर्णताओं को दूर करने का साहस करता है और एक रचनात्मक-आलोचना की पद्धति के द्वारा जीवन जीने के एक सर्वाधिक संगतिपूर्ण ढंग को स्पष्ट करने का प्रयास करता है। जीवन जीने का प्रकृतिवादीदृष्टिकोण जीवन को सरल और पूर्ण रूप से प्रकृति की यांत्रिक-योजना का एक अंग मानता है। यह सिद्ध है कि मनुष्य भौतिक-प्रकृति की योजना का एक अंग है और वह भौतिक-प्रकृति उसकी जीवन-पद्धति में निहित है, किंतु उसके विचार, उसकी भावनाएं और उसके क्रिया-कलाप इस भौतिक-प्रकृति के अतिक्रमण को लक्षित करते हैं और उन्हें पूर्णतया उस भौतिक-प्रकृति में समाविष्ट नहीं कहा जा सकता। सौंदर्यपरक व्यष्टिवादी (व्यक्तिवादी) का जीवन एवं आत्म-संस्कृति का जीवन प्रायः असफल होता है, क्योंकि मनुष्य दूसरों के कल्याण के लिए प्रयास करता है और उसमें रुचि लेता है। सांस्कृतिक-मूल्य अक्सर दूसरे व्यक्तियों से सम्बंधों में निहित होते हैं। यूकेन जीवन जीने के सामाजिक-ढंग की आलोचना इसलिए करता है कि वह व्यक्ति को सामाजिक-कल्याण का मात्र एक साधन मानकर चलता है, जबकि सामाजिकसमग्रता में ऐसे कोई भी मूल्य नहीं हैं, जो कि वैयक्तिक-अनुभूतियों के अंतर्गत नहीं आते हैं। समाज-परक जीवन-दृष्टि परिवेश के बाह्य-सम्बंधों पर अधिक बल देती है, ताकि आंतरिक प्रेरकों और आंतरिक-संतुष्टियों के महत्त्व को उपेक्षित किया जा सके या उनका मूल्य कम आंका जा सके। धीरे-धीरे विरोधी-दर्शनों की ऐसी आलोचना के द्वारा यूकेन आध्यात्मिकजीवन की धारणा की ओर अग्रसर होता है। आध्यात्मिक-जीवन बाह्य-प्रकृति का विरोधी या शत्रु नहीं है, अपितु प्रकृति की योजना में ही निहित है और उसी में जीया

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