Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 291
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/289 करती है, जैसे कि तर्कशास्त्र के स्वयंसिद्ध सत्य। यद्यपि शुभ सुखात्मक नहीं है, फिर भी उसका क्षेत्र सार्वभौम है अर्थात् सम्पूर्ण वर्तमान जैविक-जगत्, यहां तक कि भावी-जगत् भी उसके विचार क्षेत्र में लिए जा सकते हैं। मीनांग मीनांग और एहरन फेल्स विश्लेषण की बहुत ही अधिक गहराई में प्रविष्ट हुए। मीनांग ने इस बात पर बल दिया कि मूल्य वैयक्तिक-मनोभावों (संवेगों) से सम्बंधित हैं। मूल्यों के इस क्षेत्र में संवेगों की स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी कि भौतिक-वस्तुओं के ज्ञान के क्षेत्र में संवेदनाओं की। वस्तुओं का भी व्यक्तियों के संवेगों से निरपेक्ष अपने-आप में कोई यथार्थ मूल्य नहीं है, फिर भी मूल्य केवल आत्मनिष्ठ ही नहीं है, क्योंकि वे मनोभावों से परे किसी वास्तविक या संभावित तथ्य या वस्तु से सम्बंधित हैं, फिर भी मूल्य न तो व्यक्ति में निहित हैं और न वस्तु में, वरन् व्यक्ति और वस्तु के सम्बंधों में हैं। वे व्यक्तियों और जिनका उपयोग व्यक्ति करते हैं, उन वस्तुओं के सम्बंधों की जटिलता में निहित हैं। इस प्रकार मूल्यांकन एक अस्तित्व-सूचक निर्णय के साथ अनुमोदन की मानसिक-अवस्था है। अनुकूल परिस्थितियों में मूल्य का प्रत्येक विषय मूल्य की भावनाओं को जाग्रत करेगा। मूल्यों के एक सामान्य नियामक-तत्त्वकोखोज पाना असम्भव है। मीनांग ने अतिवैयक्तिकमूल्यों की धारणा के द्वारा वैयक्तिक-मूल्यों के अपने सिद्धांत की सापेक्षिकता से बचने का प्रयास किया है। ये अति वैयक्तिक-मूल्य एक उच्चक्रम के विषय हैं। वैयक्तिक और अतिवैयक्तिक-मूल्यों की खोज व्यापक एवं संभाव्य सर्वेक्षण के द्वारा की जा सकती है। मुख्य शुभ प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न नहीं होते हैं, सबके लिए समान होते हैं, उनमें ही उनकी वस्तुनिष्ठ सत्यता निहित रहती है। एहरन फेल्स (1859) एहरन फेल्स ने मूल्यों पर अभिलाषाओं (इच्छाओं) के दृष्टिकोण से विचार किया है। मूल्यवान् होने का अर्थ है- अभिलाषित होना। मूल्य पूर्णतया अभिलाषाओं पर आश्रित हैं। वस्तुओं पर मूल्यों का आरोप इसलिए किया जाता है, क्योंकि हम उनकी अभिलाषा करते हैं। हम वस्तुओं की अभिलाषा इसलिए नहीं करते, क्योंकि हमने उन मूल्यों का आरोप किया है। अभिलाषा का प्रत्येक साध्य एक संभावित तथ्य के रूप में अवश्य ही चेतन रूप से स्वीकृत होना चाहिए। एहरन फेल्स ने यह माना था कि इच्छा सुख की सापेक्षिक-अभिवृद्धि की संभावना से चालित होती है। उसने इस बात

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