Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 273
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/271 वस्तुतः अधिक सुंदर और कुछ भी नहीं है। क्या यह बात नैतिकता को समझने और उसका विवरण प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त है? किसी भी ऐसे समाज में, जिसमें कि वैयक्तिक आत्मा का अपना स्थान और उसके कर्त्तव्य हो सकते है, वह स्वयं ही नैतिक अनुमोदन और अनुमोदन का विषय हो सकता है। पुनः, क्या व्यक्ति की नैतिक प्रेरणा पूर्णतया समाज में उसके स्थान और उस स्थान के कर्त्तव्य की धारणा में निहित है? ब्रेडले इन कठिनाइयों को स्वीकार करता है, लेकिन इनके निहितार्थ को स्वीकार नहीं करता है। यद्यपि उसने यह स्वीकार किया है कि हम एक व्यक्ति को उसके स्थान और उस स्थान से बांध नहीं सकते हैं। पुनः, उसने यह भी अनुभव किया कि हम यह प्रश्न पूछ सकते हैं कि वह उच्च पूर्ण (समाज), जिसमें व्यक्ति के कर्त्तव्य आते हैं और हम यह भी पूछ सकते हैं कि वह समाज क्या एक दृश्य समाज है या हो सकता है। आदेशात्मा का सारतत्त्व किसी समाज के सीमा में नहीं आता है। संक्षेप में, यह आदर्श केवल एक पूर्ण सामाजिक-व्यक्ति का आदर्श नहीं है, फिर भी मेरा स्थान और उसके कर्त्तव्य की धारणा के सम्बंध में अपने अतिउत्साह के कारण ब्रेडले को यह कहना पड़ा कि यह दृष्टिकोण हमें अति मानवीय नैतिकता के विचार से, आदर्श समाज से और सामान्यतया व्यावहारिक-आदर्शों से विमुख कर देता है। ब्रेडले अपनी विवेचना में नैतिक शब्दावली में साधारणतया प्रचलित दो पदों आत्मलाभ और आत्मत्याग के द्वारा अभिव्यक्त आभासी-विरोध की चर्चा करने से बच नहीं सका। यह जन-साधारण के जीवन की एक सामान्य अवस्था है कि व्यक्ति को अनेक स्थितियों में निम्न तथ्यों के बीच चुनाव करना होता है, एक वह, जो कि अपना स्वयं का आत्मलाभ (स्वहित) प्रतीत होता है और दूसरा वह, जो स्वयं के आत्मत्याग के द्वारा दूसरों के शुभ (परार्थ) के रूप में प्रतीत होता है। ब्रेडले ने इस विरोध को केवल प्रतीती माना। आत्मत्याग स्वयं ही आत्मलाभ है। आत्मलाभ के प्रत्यय से एक अनंत पूर्ण की उपलब्धि के प्रत्यय की ओर बढ़ते हुए अंततोगत्वा ब्रेडले पूर्णता शब्द का उपयोग करता है। उसकी दृष्टि में पूर्णता अनंत पूर्ण के अतिरिक्त अन्य कुछ भी ऐसा नहीं है, जो कि नैतिक-गुणों के रूप में सामान्यतया स्वीकृत चरित्र की उच्छमताओं के एक पूर्ण अंगी के विशिष्ट निहतार्थ को न्यायसंगत ठहरता हो। अनंत पूर्ण ही एक ऐसी पूर्णता है, किंतु जहां पूर्णता है, वहां नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता, क्योंकि नैतिकता अपूर्णता के विरुद्ध संघर्ष में निहित है, इसलिए ब्रेडले के अनुसार, नैतिकता का विचार केवल इतिहास की प्रक्रिया में ही निहित है

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