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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/265 साधारण प्रेरकों की तुलना में अधिक महत्त्व नहीं दे पाता है, विशेष रूप से जबकि हम इन्हें एक ओर प्रतिष्ठा और उसके परिणामों के प्रति आदरभाव से तथा दूसरी ओर भावी-जीवन में पुरस्कार की प्रत्याशा और दण्ड के भय से अलग करें। यद्यपि ड्यूमोन्ट को सन् 1921 में लिखे गए परवर्ती पत्र में वह अलग से सहानुभूत्यात्मक-प्रेरक (अंकुश) और विद्वेषात्मक प्रेरक (अंकुश) को स्वीकार करता प्रतीत होता है, जिन्हें सामान्यतया नैतिक स्थाईभाव कहा जाता है। (तुलनीय-विधि और नैतिकता के सिद्धांत, वाल्यूम 1 पृ. 14 का टिप्पण) 52. ये डिआन्टोलाजी नामक ग्रंथ के प्रमुख विषय हैं। 53. देखिए बेंथम की रचनाएं, खण्ड 10, (जीवन) पृष्ठ 560, 561 एवं 79 54. यह बात ध्यान में रखना होगा कि बेंथम के बाद आस्टिन नैतिक शब्द का प्रयोग ‘विधायक-नैतिकता' के अर्थ में करता है। विधायक-नैतिकता का तात्पर्य नियमों की उस संहिता से है, जो कि किसी भी समाज में सामान्यतया स्वीकृत होती
55. संक्षिप्तता की दृष्टि से यह अक्सर सुविधाप्रद होगा कि उपयोगितावाद की चर्चा स्पष्ट रूप से केवल सुख को सूचित करती है। दुःख सुख के निषेधात्मक गुण के रूप में उसमें समाहित ही माना जाना चाहिए। 56. उपरोक्त कण्डिका (परेग्राफ) में वर्णित विचार आंशिक रूप से मिल के
आगस्ट कोम्से और भाववाद नामक निबंध (भाग 2) में अंशतः उसके स्वतंत्रता नामक निबंध में पाए जाते हैं। 57. इस सिद्धांत के महत्व को जे.एस. मिल ने अपने पिता जेम्स मिल से जाना। जेम्स मिल ने इस सिद्धांत को अपने ग्रंथ मानव मन का विश्लेषण में अधिक स्पष्टता
और दृढ़ता से प्रस्तुत किया था और जो कि मूलतः हार्टले के समान ही था, किंतु फि र भी हार्टले के शरीर-क्रिया-विज्ञान की अस्पष्टता (अपरिपक्वता) से मुक्त था। 58. बेन सहानुभूति की इस क्रिया को उस स्थिति का एक विशेष प्रसंग मानता है, जिसके अनुसार प्रत्येक कर्म करने का विचार स्वयं को क्रियान्वित होने या वस्तुतः घटित होने की प्रवृत्ति रखता है। उस कर्म करने के विचार की ऐसी प्रवृत्ति इस आधार पर नहीं है कि इससे सुख मिलेगा या दुःख दूर होगा, अपितु उसकी ऐसी प्रवृत्ति मनस की एक स्वतंत्र प्रेरणा के रूप में है। 59. नैतिक-स्थायीभाव की उत्पत्ति के साहचर्यवादी सिद्धांत का एक रुचिकर