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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 259 रूप से प्राप्त किया गया है। एक स्थान पर वह ऐसी विश्व व्यवस्था को मानता है, जिसका एक लक्ष्य शुभ है, किंतु जब वह इस शुभ शब्द का प्रयोग संकुचित अर्थ में मनुष्यों के लिए करता है, तो वह अचेतन रूप से उसकी एक विशुद्ध सुखवादी व्याख्या की ओर चला जाता है, वस्तुतः, वह स्वयं दर्शन को आनंद के अध्ययन के रूप में परिभाषित करता है। मारलिस्टस भाग 3, अनुभाग 3 में यह कह सकता हूं कि वह जहां तक मैं जानता हूं मानव जाति के शुभ या आनंद और विश्व व्यवस्था के शुभ बीच किसी संघर्ष की सम्भावना को स्वीकार नहीं करता है।
19.
स्वयं शेफट्सबरी के दृष्टिकोण के अनुसार भी यह वर्गीकरण की यह पद्धति पूरी तरह से समीचीन नहीं है। आत्मानुराग भी उतने ही स्वभाविक हैं, जितने कि सामाजिक अनुराग, यद्यपि सामाजिक अनुराग एक विशेष अर्थ में ही स्वाभाविक हैं, वे तब स्वाभाविक है, जबकि वे बृहद साध्य अर्थात् मानव जाति के शुभ के लिए अभिमुख हैं।
20.
शेफ्ट्सबरी नैतिक पसंदगी और नापसंदगी के समुचित विषय के रूप में कभी अनुरागों और क्रियाओं की बात कहता है, तो कभी केवल अनुरागों की। मेरी धारणा है कि उसका दृष्टिकोण यह है कि वह विषय बाह्य कर्म नहीं है, जो कि नैतिक संवेदना को जाग्रत करता है, अपितु वह कर्म है, जो उसकी भावना की प्रस्तुति है।
21. जैसा कि हम देखेंगे, ह्यूम साधारण मानवीय संवेग के रूप में लोककल्याण के अस्तित्व से स्पष्टतया इंकार करता है।
22. सरमन 9 वां (साथ ही सरमन 12 वें की टिप्पणी भी देखिए ) तीसरे सरमन के अंत में ।
23.
24.
सरमन 11 वां
25.
दूसरी ओर बटलर नैतिकता के विषय को 'कर्म' के रूप में परिभाषित करता है। वह कर्म, जिसमें केवल निष्क्रिय अनुभूतियों में, जहां तक कि वे हमारी शक्ति से परे हैं और उनमें भिन्न कर्म के प्रयोजन और कर्म की प्रवृत्तियां भी निहित हैं ।
26.
यह ध्यान देने योग्य है कि हचीसन आत्मप्रेम के लक्ष्य की सुस्पष्ट परिभाषा में पूर्णता और आनंद को भी समाहित करता है, किंतु अपने नैतिक दर्शन की स्थापना में वह वैयक्तिक शुभ को आनंद या सुख से भिन्न मानता है।
27.
ह्यूम का नैतिक दृष्टिकोण सबसे पहले उसके ग्रंथ ट्रेस्टीज ऑफ ह्यूमन नेचर