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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/250 के द्वारा करने की इच्छा की जा सके, वही कर्म करो। इसे प्रत्येक बौद्धिक-कर्ता के अपने स्वयं पर अत्यधिक रूप से लागू किया जा सकता है, जबकि हेगेल मानता है कि सामान्य संकल्प नियमों, संस्थाओं एवं उस पारस्परिक-समाज की नैतिकता, जिसका कि वह सदस्य है, के रूप में प्रत्येक व्यक्ति में वस्तुनिष्ठ रूप से उपस्थित है। इस प्रकार, हेगेल के दृष्टिकोण में न केवल सुखों की ओर प्राकृतिक-अभिरुचि का या व्यक्तिगत-सुखों की इच्छा का नैतिक-प्रतिरोध आवश्यक है, अपितु व्यक्ति की अंतरात्मा अर्थात् जो उचित प्रतीत होता है। उसको करने की अंत:प्रेरणा को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है। वह समाज की सामान्य बुद्धि के विरोध में आती है। यह सत्य है कि हेगेल की मान्यताएं हैं कि केवल सम्पत्ति-सम्बंधी न्याय के नियमों को मान्य करना, प्रतिज्ञाओं का पालन करना, अपराधों के लिए दंड देना आदि कार्य, जिनमें कि सामान्य संकल्प सबसे पहले होता है, की अपेक्षा शुभ की अपनी स्वयं की धारणा के क्रियान्वयन के चेतन प्रयास नैतिक-विकास की दृष्टि से एक उच्च अवस्था है, क्योंकि ऐसे बाह्य नियमों के पालन में इस सामान्य-संकल्प का वैयक्तिक-संकल्पों की बाह्य-सहमति के द्वारा केवल सांयोगिक-क्रियान्वयन हो पाता है और उस सामान्यसंकल्प की वस्तुतः उपलब्धि उनमें से किसी में भी नहीं हो पाती है। यद्यपि वह यह भी मानता है कि यह अंतरात्मा का प्रयास एक आत्मवंचना होगी, साथ ही, निरर्थक
और नैतिक-बुराई का मूल भी होगा, यदि यह अपने सिद्धि या क्रियान्वयन में इन वस्तुनिष्ठ सामाजिक-सम्बंधों के साथ संगति नहीं रखेगा, जिनमें कि व्यक्ति अपनेआप को पाता है और जब तक कि व्यक्ति अपने स्वयं के सार के रूप में उस नैतिकतत्त्व को स्वीकार नहीं कर लेता, जो कि परिवार, नागरिक, समाज और अंत में राज्य के रूप में उसे प्रदान किया गया है। वस्तुतः, यह राज्य का संगठन व्यवहार के क्षेत्र में सामान्य बुद्धि की उच्चतम अभिव्यक्ति है। यद्यपि हेगेलवाद वर्तमान युग के इंग्लिशनैतिक-विचारों में भिन्न रूप में प्रतीत होता है। हमने ग्रीन के जिस इंग्लिशअनुभवातीतवाद का पूर्व में विवेचन किया है, उसे कांटीय-हेंगेलवाद कहा जा सकता है, लेकिन उस पर कांट के दर्शन का प्रत्यक्ष प्रभाव न होकर परोक्ष प्रभाव ही है। वह परोक्ष प्रभाव भी मानवीय चिंतन और मानव-समाज के ऐतिहासिक-अध्ययन की प्रबल प्रेरणा के कारण ही आया था। हेगेल के अनुसार, विश्व का सारतत्त्व अमूर्त से मूर्त की ओर होने वाली विचार की प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया का सही ज्ञान हमें कालक्रम में यूरोपीय-दर्शन के विकास की व्याख्या की कुंजी दे देता है। पुनः,