________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/215 आभार प्रकट किया है। टूकर (1766-74)
टूकर के इस ग्रंथ में हम यह विचार पाते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी संतुष्टि या अधिक सही अर्थ में संतुष्टि की आकांक्षाएं या संभावना ही एक ऐसी चालना है, जो सभी प्रेरणाओं को क्रियान्वित करती है और जो सामान्य सुख से सम्बंधित है, साथ ही, वह एक तना है और आचरण के हमारे सभी नियम एवं सम्मान की भावनाएं उसकी शाखाएं हैं। टूकर प्राकृतिक-ईश्वर-मीमांसा के द्वारा सृष्टि के रचयिता की शुभता को सिद्ध करता है। वह यह मानता है कि नए झुकाव या रुझान स्थानांतरण से उत्पन्न होते हैं, अर्थात् हम किसी चील की पसंदगी उसके द्वारा बार-बार दूसरी इच्छाओं को प्रवृर्तित करने के आधार पर करते हैं। विशेष रूप से नैतिक- बोध का और परोपकार का निर्माण भी ऐसे ही होता है। वह परोपकार को करने वाला किसी को लाभ पहुंचाने में सुख मानता है, जो कि हमें शुभ कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित करता है, क्योंकि हम उन्हें पसंद करते हैं, किंतु उसकी दृष्टि में यह सही है कि सुखों या संतुष्टियों के योग की अपेक्षा से एक व्यक्ति का अपना स्वयं का सुख ही उसके कार्यों का परमसाध्य है। वह बड़ी सतर्कता से यह बताता है कि सभी संतुष्टियां या सुख एक ही प्रकार के हैं, यद्यपि उनमें मात्रा का अंतर हो सकता है, फिर चाहे व्यक्ति से गीत सुनकर, भावी जीवन में उन्नति की सम्भावना पर विचार कर, सुरुचि-पूर्ण स्वाद लेकर, प्रशंसनीय कार्यों को सम्पादित कर या संगतिपूर्ण विचारों के द्वारा यह संतुष्टि प्राप्त करे और पुनः सामान्य शुभ से उसका तात्पर्य सुख की मात्रा से है, जिसमें अपने पड़ोसी के प्रति किया गया प्रत्येक सुख एक योगदान है। यहां हम पेले के उपयोगितावाद की सब विशेषताओं को देखते हैं (1) सुख का विशुद्ध रूप से मात्रात्मक मूल्यांकन, (2) सामान्य सुख की अभिवृद्धि को ही नैतिक नियमों की कसौटी मानना, (3) व्यक्तिगत सुख को सामान्य प्रेरणा मानना, (4) प्रेरणाओं और नियमों का संबंध सर्वशक्तिमान परोपकारी सत्ता का संकल्प। यद्यपि टूकर ने वैयक्तिक और सामान्य-सुख के बीच जिस ईश्वरीय-कड़ी को माना है, उसमें एक विशेष प्रकार की अवास्तविकता है, जिस पर पेले की सहज बुद्धि ने विचार नहीं किया है। वह कहता है कि यदि व्यक्ति की कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है, तो कोई इच्छा ही नहीं है, इसलिए ईश्वरीय समता अंत में सभी को सुख का समान भाग ही प्रदान करेगी, इसलिए अंतिम रूप में मुझे अपने उस आचरण के द्वारा अपने सुख में अभिवृद्धि