________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/244
और व्यापक प्रतिष्ठाभी अंग्रेज नीतिवेत्ताओं को उसके नैतिक दर्शन के गम्भीर अध्ययन के लिए 50 वर्षों तक आकर्षित नहीं कर पाई, जबकि उसका दर्शन इन 50 वर्षों तक विश्व के सम्मुख प्रतिष्ठित बना रहा, यद्यपि कांट के मूलभूत नैतिक-सिद्धांत को एक शताब्दी (19 वीं शताब्दी) के प्रथम भाग में कोलेटिप नामक कवि एवं दार्शनिक ने उत्साहपूर्वक सबसे पहले ग्रहण किया कोलटिप आंग्ल-चिंतन के प्रभावशाली लोगों में बहुत ही अधिक प्रभावशाली एवं लोकप्रिय था। बाद में कांट के प्रभाव के विभिन्न संकेत विवेक और सहजज्ञानवादी-सम्प्रदाय के दूसरे लेखकों में पाए जाते हैं। जर्मन-चिंतन की उपलब्धियों के प्रति पिछले 40 सालों में अंग्रेजों की जो व्यक्तिगत अभिरुचि रही है, उसके कारण कांट के ग्रंथों को इतने व्यापक रूप से जाना जाने लगा है कि उसके नैतिक-सिद्धांत के विवेचन के बिना ग्रंथ अपूर्ण ही रह जाएगा। कांट (1724-1808)
अंग्रेज-नीतिवेत्ताओं में प्राईस से कांट की बहुत अधिक निकटता है। वस्तुतः, आधुनिक यूरोप के नैतिक विचारों में कांट के सिद्धांत का वही महत्त्वं है, जो कि इंग्लैण्ड में प्राईस और रीड के सिद्धांतों का है। इन विचारकों के समान ही कांट यह मानता है कि बुद्धिमान् प्राणी के रूप में मनुष्य बुद्धि के निरपेक्ष आदेशों या औचित्य के किन्हीं नियमों को मानने के लिए निरपेक्ष रूप से बंधा हुआ है। प्राईस के समान वह यह भी मानता है कि कोई भी कार्य जब तक शुभ नहीं होता, तब तक कि वह शुभ प्रेरणा से नहीं किया जाता है और इस प्रेरणा को किसी भी प्रकार के प्राकृतिक-झुकाव से मूलतः भिन्न होना चाहिए। कर्त्तव्य वस्तुतः कर्त्तव्य बन सके, इसलिए कर्त्तव्य को कर्त्तव्य के लिए ही किया जाना चाहिए। कांट प्राईस और रीड की अपेक्षा भी अधिक सूक्ष्मता से यह तर्क देता है कि यद्यपि सद्गुणी कर्ता के लिए सद्गुणात्मक-कार्य निस्संदेह सुखद होगा और किसी भी कर्तव्य का उल्लंघन दुःखद होगा, यह नैतिक सुख या दुःख यथार्थतया किसी भी कार्य का प्रेरक नहीं हो सकता, क्योंकि यह कर्तव्य को करने के लिए हमारे आबंध की स्वीकृति का पूर्ववर्ती होने की अपेक्षा उसका अनुवर्ती है। पुनः, प्राईस के साथ वह यह मानता है कि अभिप्राय और प्रेरक की उचितता न केवल कार्य की उचितता की एक अपरिहार्य शर्त है, अपितु वास्तव में उसके नैतिक-मूल्य का पूरी तरह निर्धारण भी करती है, किंतु अधिक दार्शनिकसूक्ष्मता के साथ कांट ने जो निष्कर्ष प्राप्त किया है, उसकी कल्पना अंग्रेज-नीतिवेत्ताओं ने स्वप्न में भी नहीं की थी। वह निष्कर्ष यह है कि आचरण की भौतिक-उचितता के