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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/243 तरह स्वतंत्र हैं। बेंथम का सम्प्रदाय सामान्यतया ऐतिहासिक-विभिन्नताओं को दृष्टिगत रखे बिना ही सभी कालों और सभी देशों के व्यक्तियों के हेतु महत्त्वपूर्ण नैतिक और राजनीतिक-समाधान प्रस्तुत करने में अपने को सक्षम मानता हुआ प्रतीत होता है, किंतु कोम्त के सामाजिक-विज्ञान की धारणा में समाज के विकास के नियमों का ज्ञान आधारभूत और सहजरूपसे व्यक्तिगत महत्त्व का है। कोम्त के अनुसार, राजनीति और नीतिशास्त्र- दोनों ही सामाजिक-विज्ञान के व्यावहारिक-उपयोग हैं। उसकी दृष्टि में मानवता विभिन्न स्तरों से गुजरी है और प्रत्येक स्तर पर विभिन्न प्रकार के नियमों एवं संस्थाओं तथा आदतों एवं रीतिरिवाजों का एक भिन्न प्रारूप सामान्यतया उचित होता है। इस प्रकार, वर्तमान मनुष्य एक ऐसा मनुष्य है, जिसे विगत इतिहास के ज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है। कोम्त की दृष्टि में विशुद्ध रूप से अमूर्त और अनैतिहासिक-पद्धति के द्वारा नैतिक और राजनीतिक-आदर्शों के निर्माण का कोई भी प्रयास अनिवार्यता और आवश्यक रूप से व्यर्थ होगा।
विनायक-नियमों और नैतिकता में किस समय कौनसे सुधार अपेक्षित होंगे, इसका निश्चय केवल सामाजिक-गत्यात्मकता की सहायता से ही किया जा सकता है। यह दृष्टिकोण कोम्त के इस विशिष्ट सम्प्रदाय की सीमाओं को बहुत ही व्यापक बना देता है और वस्तुतः वर्तमान युग के शिक्षित व्यक्तियों के द्वारा सर्वाधिक मान्य प्रतीत होता है। इंग्लिश-नीतिशास्त्र पर जर्मन-प्रभाव
फ्रांसीसी-दर्शन के समान ही जर्मन के दर्शन का प्रमाण भी वर्तमान युग के पहले तक अपेक्षाकृत रूप में कम महत्त्वपूर्ण ही रहा है। वस्तुतः, 17वीं शताब्दी में मुफेनडार्फ के ग्रंथ प्रकृति के नियम' ला आफ नेचर में ग्रोटिअस के सामान्य दृष्टिकोण को कुछ परिष्कार के साथ पुनर्स्थापित किया गया था। यह ग्रंथ हाव्स के नए सिद्धांत के साथ समन्वय करने की दृष्टि से लिखा गया था और इसका आक्सफोर्ड में और अन्यत्र काफी अध्ययन किया गया। लाक इस ग्रंथ को एक संस्कारवान् व्यक्ति की पूर्ण शिक्षा के लिए एक आवश्यक ग्रंथ मानता है, किंतु आचरण के सिद्धांतों का जर्मनी में होने वाला परवर्ती विकास अंग्रेजों की जन-चेतना से पूर्णतया अलग हो गया। यहां तक कि जर्मनी में विस्तृत एवं पूर्ण रूप में बहुत अधिक समय तक प्रभावशाली बने रहने वाले कांट (मृत्यु 1754) के दर्शन का ज्ञान बहुत ही अधिक अध्ययनशील अंग्रेज लेखकों को भी मुश्किल से ही था। कांट की प्रभावशाली प्रज्ञा