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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 246
धारणा को प्राप्त करते हैं। मुझे जो उचित है, उसे इसलिए करना चाहिए कि वह उचित है, न कि इसलिए कि मैं उसे पसंद करता हूं। इस ज्ञान में यह निहित है कि ऐसा विशुद्ध रूप से बौद्धिक-संकल्प सम्भव है । मेरा कार्य सुखात्मक और दुःखात्मक - अनुभूतियों के प्राकृतिक उद्दीपकों की अनिवार्य प्रक्रिया के द्वारा यांत्रिक-रूप से निर्धारित नहीं
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हो सकता, अपितु उसका निर्धारण मेरी सच्ची बौद्धिक - आत्मा के नियमों के साथ संगति रखने से होगा। बुद्धि की सिद्धि या बौद्धिक रूप से मानवीय - संकल्प की सिद्धि इस प्रकार अपने-आप को कर्तव्य के एक निरपेक्ष साध्य के रूप में प्रस्तुत करती है और इस प्रकार, मूलभूत व्यावहारिक - नियम का एक नया रूप प्राप्त करते हैं, जिसके अनुसार मानवता, चाहे वह तुम्हारे अंदर हो या दूसरों के, उसे सदैव साध्य मानों और कभी भी साधन मत बनाओ। जहां हम यह भी देखते हैं कि स्वतंत्रता का प्रत्यय नीतिशास्त्र को न्यायशास्त्र के साथ एक सरल और आकर्षक ढंग से जोड़ देता है, यहां एक और न्यायशास्त्र का मुख्य उद्देश्य दूसरे व्यक्तियों के संकल्पों के हस्तक्षेप के कारण किसी व्यक्ति के स्वतंत्र कार्य में उत्पन्न की गई बाधाओं को दूर करके बाह्य-स्वतंत्रता को प्राप्त कराना है, वहीं दूसरी ओर, नीतिशास्त्र व्यक्ति की स्वाभाविक - अभिरुचियों के विरोध में बौद्धिक - साध्य की उपलब्धि के प्रयासों के द्वारा आंतरिक-स्वतंत्रता' की प्राप्ति से सम्बंधित है। यदि हम यह पूछें कि संक्षेप में बौद्धिक-साध्य क्या है और साध्य से हमारा अर्थ एक ऐसे परिणाम से हो, जिसे कार्य के द्वारा प्राप्त करना चाहते है ।
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इस दूसरे प्रकार की स्वतंत्रता को ही स्वतंत्रता के अर्थ में ग्रहण किया है, न कि पहले प्रकार की स्वतंत्रता को किया जाता है, तो इसके उत्तर में कांट का कथन यह होगा कि अपने जैसे सभी बौद्धिक-प्राणी प्रत्येक बौद्धिक-प्राणी के लिए अपने-आप में साध्य हैं। कांट का यह कथन मुश्किल से ही एक स्पष्ट उत्तर कहा जा सकता है, इसका अर्थ यह किया जा सकता है कि व्यावहारिक रूप से प्राप्त यह परिणाम उन सभी बौद्धिक-मानवों की बौद्धिकता का विकास करता है, जिनकी बौद्धिकता अभी भी अपूर्ण रूप में है, किंतु कांट का दृष्टिकोण ऐसा नहीं है। वस्तुतः, वह यह मानता है
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प्रत्येक व्यक्ति को अपनी नैसर्गिक शक्तियों और अपने नैतिक-स्वभाव के विकास के द्वारा अपने-आप को यथासंभव बुद्धि का सर्वाधिक पूर्ण माध्यम बनाने का प्रयास करना चाहिए, किंतु इसी तरह दूसरे व्यक्तियों की ऐसी पूर्णता को भी प्रत्येक व्यक्ति को साध्य निरूपित किया जा सकता है। इस बात से वह स्पष्टतया इंकार करता है, वह