________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/227 तथ्यों के रूप में, दुःखों से रक्षा करने वाले तथ्यों के रूप में किया जाता है। ऐसा सद्गुण का सुखों के प्रत्यक्षस्रोत से साहचर्य और सद्गुण-सम्बंधी नियमों के उल्लंघन का पश्चाताप के दुःख से साहचर्य होने के कारण होता है, इसलिए सद्गुण नैतिकदृष्टि से विकसित चेतना के लिए स्वत: अपने लिए ही इच्छा का विषय होता है। जहां तक सद्गुणात्मक कार्यों के क्रियान्वयन का सम्बंध है, वे किसी व्यक्ति के अपने स्वयं के अधिकतम सुख को प्राप्त करने का एक विशेष प्रकार हैं, किंतु मिल मानता है कि सद्गुणात्मक-आचरण की यह अर्जित प्रवृत्ति इतनी प्रबल हो सकती है कि उसके संकल्प करने की आदत सदैव बनी रहे। यह आदत उस अवस्था तक बनी रह सकती है, जब तक वह पुरस्कार, जिसे सद्गुणी व्यक्ति अपनी कल्याणकारी चेतना के द्वारा प्राप्त करता है, कम से कम उसने जो दुःख उठाए हैं, या जिन इच्छाओं का त्याग किया है, उसके बराबर कुछ भी हो। इस प्रकार, जब एक शूरवीर या आत्मबलिदानी व्यक्ति दूसरों के सुख की अभिवृद्धि करने के लिए अपने स्वयं के सुख के पूर्ण त्याग का स्वैच्छिक रूप से संकल्प करता है, तो वह सिवाय इसके कि यह भविष्य में इसके त्याग के सही अनुपात में सुखद होगा और किसी चीज की इच्छा नहीं करता है, किंतु अपनी इसी आदत के द्वारा वह उसका भी संकल्प कर सकता है, जो कुल मिलाकर दुःखद हो। यह ऐसा उसी नियम के आधार पर करता है, जिसके अनुसार एक कंजूस व्यक्ति पहले सुख के लिए धन प्राप्त करता है, किंतु बाद में धन के लिए ही सुख का त्याग कर देता है। वे नैतिक स्थायीभाव जो कि अंत में इस शक्ति को प्राप्त करते हैं, मिल और हार्टले के दृष्टिकोण में अनेकों जटिल तथ्यों से निर्मित होते हैं। वे इतने मिश्रित होते हैं कि अनेक स्थितियों में उनके परिणामस्वरूप होने वाली भावना अपने घटकों के योगसे बिलकुल भिन्न होती है। साधारण व्यक्तियों में उनकी उत्पत्ति निश्चित ही आंशिक-रूप से कृत्रिम होती है। आंशिक-रूप से वे जैसा कि बेन ने कहा है, विशेषज्ञों या शासन के अधीन अंतर्विवेक के शिक्षण के कारण होता है, जिसे कि भ्रांत होने की सम्भावना बनी रहती है। इसके द्वारा उत्पन्न होने वाले नैतिक-आवेग कभीकभी बहुत ही भद्दे और शरारतपूर्ण होते हैं। यद्यपि कृत्रिम रूप से उत्पन्न होने वाले स्थायीभाव बौद्धिक-संस्कृति के समान विश्लेषण (अलगाव) की विनाशकारी शक्ति को भी उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन जहां तक नैतिक स्थायीभाव उपयोगितावादी-नियमों के साथ संगति रखते हैं, वहां तक वे मानव-जाति की सामाजिक-भावना के जिन प्राकृतिक-स्रोतों से आंशिक-रूपसे उत्पन्न होते हैं, उनके