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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 229
मुख्य तर्क
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प्रारम्भिक अवस्था पर आधारित है, जिसमें ये स्थायीभाव बच्चों के द्वारा अभिव्यक्त होते हैं। वे इस बात पर बल देते हैं कि यह तर्क इन स्थायीभावों से सम्बंधित परिणामों को उत्पन्न करने हेतु साहचर्य के लिए मुश्किल से ही समय प्रदान कर पाता है। इस तर्क का उत्तर वर्त्तमान युग में वंशानुक्रम के दैहिक सिद्धांत को मन पर लागू करके दिया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, माता-पिताओं के मस्तिष्क या मन में विचारों के साहचर्य या अन्य प्रकार से उत्पन्न परिवर्तन उनकी संतानों में संकलित होने की प्रवृत्ति रखते हैं, ताकि नैतिक - इंद्रिय या अन्य किसी शक्ति या वर्त्तमान मनुष्य की अतिसंवेदनशीलता के विकास की उत्पत्ति की कल्पित पद्धति के परिवर्तन के बिना परिकाल्पनिक रूप में मानव जाति को प्राक् - ऐतिहासिक जीवन तक ले जाया जा सके। वर्त्तमान में वंशानुक्रम-सम्बंधी यह दृष्टिकोण हार्बिन के प्राकृतिक-वरण के सिद्धांत से सामान्यतया सम्बंधित माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, जीवित प्राणियों की विभिन्न जातियां अपनी प्रजनन की एक श्रृंखला में जिन परिस्थितियों में जीवन जीती हैं, उनके अनुसार क्रमशः ऐसे अंगों, शक्तियों एवं आदतों से सम्पन्न हो जाती हैं, जो कि उनके अस्तित्व को बनाए रख सकती हैं। इस सिद्धांत ने नैतिक-स्थायीभावों के इतिहास में एक नया प्राणिक तथ्य प्रस्तुत किया। यद्यपि यह तथ्य किसी भी रूप में प्राथमिक (आदिम) भावनाओं के सम्मिश्रण के द्वारा नैतिकस्थायीभावों के निर्माण के प्राचीन मनोवैज्ञानिक सिद्धांत से असंगत तो नहीं है, फिर भी इसे मानव जीवन का संरक्षण करने वाले स्थायीभावों के अस्तित्व के समर्थन के द्वारा एवं जीवन- -रक्षण के विरोधी स्थायीभावों को बाधित करके साहचर्य के नियमों के प्रभावों का नियामक एवं परिष्कारक माना जाना चाहिए।
विकासवादी - नीतिशास्त्र
नैतिक-विकास-सम्बंधी यह दृष्टिकोण डार्विन के सिद्धांत के व्यापक समर्थन के कारण वर्त्तमान में अधिक प्रचलित है, साथ ही, इस सिद्धांत ने नैतिक - चिंतन को भी अधिक मौलिक रूप से प्रभावित किया है। इससे न केवल नैतिक-स्थायीभावों के विकास की साहचर्यवादी - व्याख्या का परिष्कार किया है, अपितु इसने कार्यों की शुभ और अशुभ- प्रवृत्तियों के निर्धारण की बेंथम की प्रणाली और कसौटी को भी निम्न आधारों पर अलग रख दिया है
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(1) प्रथमतया, इसने दुःख पर सुख की अधिकता के लिए मानव-समाज या मानवजाति के संरक्षण के अधिक वस्तुनिष्ठ जैविक-प्रत्यय को प्रस्तुत किया है,
अथवा