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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/238 के प्रति समर्पित होने के लिए या जिसे रोकना उसकी शक्ति में नहीं, उसके लिए कोई भी दोषी अथवा दण्डनीय नहीं माना जाता है। पुनः, सामान्यतया हम यह निर्णय लेते हैं कि उन बुरे कर्मों की आपराधिकता वास्तविक रूप से कम हो, जाती है जो कि भय-आवेग या तीव्र यातना (पीड़ा) की अवस्था में किए जाते हैं। भावनाओं का निरोध करने में मनुष्य की कार्य-शक्ति की सीमितता की इस स्वीकृति में, इन सीमाओं के अंतर्गत उसके स्वतंत्र रूप से कार्य करने की यथार्थता को भी गौण रूप में स्वीकार कर लिया गया है, क्योंकि यदि सभी कार्य समान रूप से अनिवार्य हैं, तो एक व्यक्ति, जो रिश्वत के लिए राष्ट्र के रहस्यों का उद्घाटन कर राष्ट्र के प्रति विश्वासघात करता है, वह भी एक अप्रतिरोधी प्रेरक से उतना ही बाध्य है, जितना कि वह व्यक्ति, जो यातनाओं के कारण विश्वासघात करता है। यदि सभी कार्य समान रूप से अनिवार्य हैं, तो फिर क्यों इन दोनों घटनाओं के हमारे निर्णयों में इतनी अधिक भिन्नता होती
मैं सोचता हूं कि सामान्यतया जिन आधारों की हमने अभी संक्षिप्त विवेचना की, उन्हीं आधारों पर रीड के समय से ही संकल्प की स्वतंत्रता को सहजज्ञानवादी नीति-वेत्ताओं के द्वारा सामान्य रूप से स्वीकृत किया जाता रहा है, किंतु कांट के अपरोक्ष प्रभाव के कारण या विलियम हेमिल्टन आदि दूसरे विचारकों के द्वारा संक्रमित उसके परोक्ष प्रभाव के कारण शक्ति की चेतना के उस तर्क का परित्याग कर दिया गया, जो कि वस्तुतः विरोधी अकल्पनीयताओं के विरोध या संघर्ष की ओर ले जाती हैं और उसके स्थान पर सारा बल कर्त्तव्य या पुरस्कार या दण्ड की चेतना के तर्क पर दिया गया। निर्धारणवादी (नियतिवादी) नीतिशास्त्र
दूसरी ओर, उपयोगितावादी नीति-वेत्ता सामान्यतया निर्धारणवादी (नियतिवादी) रहे हैं। संकल्प की स्वतंत्रता का प्रत्यय भौतिक-विज्ञान के सभी अध्येताओं के द्वारा स्वीकृत कारण के प्रत्यय की सार्वभौमिकता से असंगत है। इस कठिनाई को वैज्ञानिक-प्रगति ने अपनी सतत रूप से बढ़ती हुई शक्ति के द्वारा उपस्थित किया है, किंतु इसके अतिरिक्त भी उपयोगितावादियों ने संकल्प की स्वतंत्रता के लिए सामान्यतया उत्तरदायित्व तथा पुरस्कार एवं दंड के आधार पर दिए गए तर्क को निरस्त करने का प्रयत्न किया है। यह कार्य उन्होंने इन प्रचलित पदों को एक नया अर्थ देकर किया है। उपयोगितावाद के समर्थक निर्धारणवादियों के अनुसार, जनसाधारण