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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/234 चाहिए। इसका एक पूर्ण एवं निश्चित विवरण अभी तक नहीं दिया जा सका है, क्योंकि हम केवल उन शक्तियों को छोड़कर, जिन्हें प्राप्त कर लिया जाता है, मनुष्य की शक्तियां क्या-क्या हैं, यह नहीं जान सकते। अभी तक प्राप्त वे शक्तियां भी केवल आंशिक ही हैं, लेकिन उनका आंशिक-निर्धारण नैतिकता के प्रचलित नियमों में पाया जा सकता है। यद्यपि प्रचलित नैतिक-नियमों को निरपेक्ष रूप से और निर्विरोध रूप से प्रामाणिक नहीं माना जा सकता, तथापि वे संघर्षशील आवेगों के विरुद्ध अप्रतिबंधित रूप से बंधनकारक हैं, सिवाय आचरण में अच्छाई के लिए की गई उस इच्छा के, जो कि नैतिक-वातावरण से उत्पन्न होती है। एक शुभ संकल्प ही निरपेक्ष शुभ है। जब हम अपने आप से पूछते हैं कि ये मूलभत आकार कौन-सै हैं, जिनमें सच्चे शुभ के लिए संकल्प (जो कि शुभ होने का संकल्प है) को प्रकट होना चाहिए, तो हमारा उत्तर भी सद्गुणों के ग्रीक-वर्गीकरण की दिशा का ही अनुसरण करेगा। यद्यपि हमारे दृष्टिकोण को सद्गुणों की वर्तमान धारणाओं तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, इसे सद्गुणों के वर्गीकरण में कला एवं विज्ञान को तथा इसके साथ-ही-साथ विशेष रूप से नैतिक-सद्गुणों को भी समाहित करना चाहिए। शुभ संकल्प मानव समाज के हित में सत्य को जानने का, सुंदर को निर्मित करने का, दुःखों एवं भयों को सहन करने का तथा सुख के आकर्षणों का प्रतिरोध करने का संकल्प है। अंत में, हमें यह बताया गया है कि सच्चे शुभ का प्रत्यय स्वयं के शुभ में और दूसरों के शुभ में कोई अंतर स्वीकार नहीं करता है। उसे उन विषयों की उपलब्धि से नहीं प्राप्त किया जाता है, जिनके लिए समाज में प्रतिस्पर्धा होती है, यद्यपि सच्चे शुभ का वैज्ञानिक और कलात्मक-क्षमताओं की उपलब्धि में किस प्रकार वस्तुतः अंतर्भाव होता है, इसे स्पष्ट रूप से विवेचित नहीं किया गया है। स्वतंत्र-संकल्प
हाव्स से लेकर वर्तमान समय तक के इंग्लिश-नीतिवेत्ताओं के विचारों के विकास का जो विवरण हमने इस अध्याय में प्रस्तुत किया है, उसमें संकल्प की स्वतंत्रता के प्रश्न पर विभिन्न नीतिवेत्ताओं के दृष्टिकोण के विवेचन को छोड़ दिया था। इसे छोड़ने का कारण यह था कि उनमें से अनेक लेखकों ने या तो इस कठिन और उलझनपूर्ण प्रश्न का विवेचन ही नहीं किया था, या इनके नैतिक-महत्त्व को बहुत ही नगण्य करके इसकी चर्चा की थी। यह विवेचन का दूसरा रूप मेरे दृष्टिकोण के साथ संगति रखता है। उन पाठकों को, जिन्हें