________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 219
इस कर्म के मूल्य का निर्धारण कर सकते हैं। यहां हमें उन अनुभवों की तीव्रता और समयावधि- दोनों का विचार करना होगा और साथ ही निश्चितता और अनिश्चितता का भी ", किंतु तीव्रता से भिन्न किसी गुणात्मक - अंतर की कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि सुख की मात्रा के समान होने के लिए पुशपिन का खेल भी इतना ही शुभ है, जितनी एक कविता। उसके पश्चात्, हमें उन प्राथमिक- परिणामों की उत्पादकता और विशुद्धता पर भी विचार करना होगा। विशुद्धता का अर्थ है- उनकी विशेष प्रकार की भावनाओं के अनुसरण करने की प्रवृत्ति और विरोधी प्रकार की भावनाओं से अलग रहने की प्रवृत्ति, तब यदि हम इस प्रकार समीक्षित सभी सुख और दुःखों के मूल्यों का योग करें, तो सुख या दुःख की ओर की जमा राशि हमें किसी व्यक्ति-विशेष के द्वारा कर्म की अच्छी और बुरी प्रवृत्ति को सूचित करेगी। तब हमें इसी प्रक्रिया को उन सब व्यक्तियों, जिसके हित उससे सम्बंधित प्रतीत होते हैं, के लिए दोहराना होगा और इस प्रकार हम कर्म की सामान्य शुभ अथवा सामान्य अशुभ प्रवृत्ति की ओर पहुंच सकेंगे। वस्तुतः, बेंथम इस बात की अपेक्षा नहीं करता है कि प्रत्येक नैतिक निर्णय के पहले इस प्रक्रिया का पूरी तरह अनुसरण किया जाए, किंतु यह मानता है कि इसे हमेशा दृष्टिगत दृष्टि में रखना चाहिए और हम जितने ही इसके निकट होंगे, हमारे नैतिक निर्णय (नैतिक तर्क) उतने ही यथार्थ हो सकेंगे।
मानो कि इस प्रकार किस परिस्थिति में कौन - सा कर्म अपने आचरण की दृष्टि से उत्तम होगा, इसका निर्धारण किया जा सकता है। इसके बाद हमें इस सम्बंध भी खोजबीन करनी होगी कि व्यक्ति को उस आचरण को किस प्रेरणा से करना होगा। इस प्रश्न के निदर्शनात्मक उत्तर को प्राप्त करने के लिए हमें सुखों और दुःखों को एक भिन्न दृष्टिकोण अर्थात् निमित्त कारण या साधन के आधार पर वर्गीकृत करना होगा या उनके लिए इस सम्बंध में बेंथम के मुख्य आचरण के नियमों की अनुशास्ति नाम नैतिक-अंकुश, जिनके अनुसार चलने के लिए वे मनुष्य को प्रेरित करती है। स्वयं के सुख और दुःख की प्रत्याशा से मनुष्य उपयोगी नियमों का पालन करने हेतु जिन तथ्यों के द्वारा उद्यत होते हैं, वे या तो ( 1 ) सामान्य प्राकृतिक अवस्थाएं होती हैं, न कि किसी मानवीय या ईश्वरीय संकल्प के माध्यम के द्वारा उद्देश्यपूर्ण ढंग से रूपांतरित अवस्थाएं, अथवा (2) किसी प्रभुसत्ता के संकल्प को पालन करवाने के लिए नियुक्त न्यायाधीशों की कार्यवाही होती है या (3) प्रत्येक व्यक्ति के अपने सहज स्वभाव के अनुसार समाज के चुने हुए व्यक्ति होते हैं। इन्हें बेंथम की शब्दावली