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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/162 है। किंतु यह मात्र ईश्वर के संकल्प के रूप में नहीं वरन् उस ईश्वरीय प्रज्ञा से होता है जिसके प्रकाश का मनुष्य भी अपूर्ण रूप से भागीदार है। गणितीय सत्यों के समान नैतिक सत्य भी मूल रूप से और सम्यक् रूप से इंद्रियगम्य तथ्यों से सम्बंधित नहीं हैं, किंतु वे वस्तुओं के सामान्य एवं बुद्धिगम्य स्वरूप से सम्बंधित हैं, जो कि मनस के समान ही शाश्वत हैं और उनका अस्तित्व भी मनस् से अवियोज्य है, इसीलिए नैतिक तर्कवाक्य बुद्धिमान् प्राणियों के आचरण के निर्देशक (सिद्धांत) के रूप में उतने ही अपरिवर्तनीय एवं प्रामाणिक हैं, जितने कि ज्यामिती के सत्य जिस रूप में हाब्स अपने सापेक्षवाद के बावजूद भी प्रकृति के नियमों को शाश्वत एवं अपरिवर्तनीय मानता है, उस रूप में कडवर्थ उन्हें शाश्वत एवं अपरिवर्तनीय नहीं मानता है। कडवर्थ का हाव्सवाद का विरोध भी हमें सामान्यतया प्रभावकारी या असरकारक प्रतीत नहीं होता है। वह हाव्ससाद, जिसे वह नोवन टिक्यू फिलासफी के अर्थ में केवल प्रोटोगोरस के अणुवाद एवं सापेक्षवाद के पुनर्जीवित के रूप में मानता है, उसका मुख्य खण्डनात्मक तर्क प्रतिवादी के निजी सिद्धांतों पर आधारित है, जिसके द्वारा वह यह बताने की कोशिश करता है कि हाव्स का अणुवादी भौतिकवाद एक वस्तुगत भौतिक विश्व के प्रत्यय को प्रस्तुत करता है। वह ऐसे निष्क्रिय बोध का विषय नहीं है, जो कि व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न हो किंतु वह क्रियाशील बुद्धि का विषय है, जो कि सभी में समान है। इसी आधार पर वह यह तर्क करता है कि उसी बुद्धि को नीति के क्षेत्र में कार्य करने से रोकना स्वयं तार्किक दृष्टि से असंगत है और उचित एवं अनुचित की भी एक वस्तुतःगत दुनिया है, जिसे मनस् अपनी सामान्य क्रियाओं के द्वारा जानता है। मूर (1614 से 1687)
___ कडवर्थ की पूर्वोक्त पुस्तक में उन नैतिक सिद्धांतों की व्यवस्थित व्याख्या नहीं मिलती है, जिनका बोध उसकी मान्यता के अनुसार अंतरात्मा के द्वारा होता है। किंतु इस कमी की पूर्ति उसी विचारधारा के एक अन्य विचारक हेनरी मूर की नीतिशास्त्र सम्बंधी पुस्तक के द्वारा होती जाती है। वह उन तेईस सद्गुणों (शुभों) की सूची देता है, जिनकी सत्यता तत्काल ही स्पष्ट हो जाती है। उनमें से कुछ स्वहितवादी दृष्टिकोण समर्थक है, और ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने भी उन्हें ऐसा ही समझा है। उदाहरणार्थ शुभों में गुणों के साथ-साथ अवधि का अंतर होता है। सर्वोत्तम शुभ और कम से कम बुराई को हमेशा प्राथमिकता दी जानी