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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/196 बिलकुल भिन्न एक औचित्य का बोध होता है।
यह औचित्यबोध हमारे नैतिक निर्णयों का सारभूत एवं सामान्य तत्त्व होता है। प्राथमिक रूप से ये नैतिक निर्णय दूसरों के चरित्र और आचरण पर ही दिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में औचित्य बोध अपने सरलतम रूप में सीधा सहानुभूति या दूसरों के भावावेगों के सहगामी भाव से उत्पन्न होता है, जिसमें दृष्टा स्वयं अपने को भी उसी स्थिति में कल्पित कर उस भाव का अनुभव करता है। यह दूसरे मनुष्य की भावनाओं के साथ हमारी भावनाओं के साहचर्य की चेतना सदैव ही सुखद होती है। तब भी, जबकि सहानुभूति को उत्तेजित करने वाला भाव और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली सहानुभूति की भावना स्वयं भी दुःखद हो, यह तदनुसारिता का बोध ही उसका सारतत्त्व है। जब हम भी किसी भावना एवं उसकी अभिव्यक्ति का अनुमोदन करते हैं तो वह उन कर्मों का सारतत्त्व होता है, जो इसके परिणामस्वरूप होते हैं। दूसरों की भावनाओं को उनके लक्ष्यों की दृष्टि से उपयुक्त मानना ही वह वस्तु है, जिसे हम सहानुभूति कहते हैं। एक व्यक्ति, जिसकी सहानुभूति मेरे दुःखों के साथ है और कुछ नहीं, वरन् वह मेरे दुःखों की पर्याप्तता को स्वीकार करता है। इसी प्रकार एक दर्शक एक भावना को केवल अति मानकर तब नापसंद करता है, जब वह इतनी अधिक मात्रा में अभिव्यक्त की जाती है कि वहां तक उसकी सहानुभूति पहुंच नहीं पाती है, अथवा उसे तब दोषपूर्ण मानता है, जबकि वह उस दर्शक की सहानुभूत्यात्मक कल्पना से पूरी तरह मेल नहीं खा पाती है, यद्यपि ऐसा कम ही होता है। इस स्पष्ट प्रतिवाद के सम्बंध में कि हम अक्सर बिना सहानुभूति के भी अनुमोदन करते रहते हैं। यहां यह प्रत्युत्तर दिया गया है कि ऐसी अवस्था में हम इस बात के लिए चेतन होते हैं कि हमें उसके प्रति सहानुभूति रखना चाहिए, यदि हम सामान्य अवस्था में हैं और उसकी और अपेक्षित ध्यान देते हैं। यह ठीक वैसे ही होता है, जैसे कि हम एक व्यंग्य या विनोद अथवा मित्रमंडली की ऐसी मजाक का अनुमोदन तब भी करते हैं, जब कि हम गम्भीर मनोदशा में होने के कारण स्वयं हंसते नहीं है, क्योंकि हम इस सम्बंध में सचेत है कि अनेक अवसरों पर ऐसे हास्य-विनोद के हम भी सहभागी होते हैं। यहां यह ध्यान में रखना होगा कि औचित्य का यह बिंदु विभिन्न आवेगों (भावनाओं) में विभिन्न स्थानों पर स्थिर रहता है। कभी वह अति की ओर होता है, तो कभी कमी की
ओर होता है। यही कारण है कि इस बिंदु की वास्तविक स्थिति के सम्बंध में दर्शकों में अधिक मतभेद रहता है। वस्तुतः, भावना अनुरूपता को प्राप्त करने के लिए अक्सर