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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 212
यह भी मानता है कि केवल आधिपत्यता (स्वामित्व ) उपयोग करने का अस्थाई अधिकार ही प्रदान करती है। दूसरे सिद्धांत, जिनका वह विवेचन करता है, वे सत्यनिष्ठा और अपने वचनों के प्रति सच्चा होना (प्रतिज्ञापालन ) है। उनकी विवेचना में उसका मुख्य उद्देश्य यह बताना है कि मानव-मन में उपयोगिता की गणना से स्वतंत्र सत्य के प्रति एक नैसर्गिक और सहज प्रेम होता है। इसके साथ ही अपने पारस्परिक व्यवहारों में विश्वास- पात्रता का एक नैसर्गिक आवेग भी होता है। इसी प्रकार, प्रमाणिकता के प्रति एक स्वाभाविक विश्वास तथा यह स्वाभाविक - प्रत्याशा कि दिए गए वचनों का पालन होना भी पाई जाती है और यह बात की ईमानदारी में सुखदता और पसंदगी के तत्त्व भी और एक दुनिष्ठा में एक अन्याय स्वीकृति है। ये तथ्य हमें अंतिम परिणामों के प्रति आस्था से दूर कर देते हैं। स्टेवार्ट किसी भी स्थिति में कोई एक ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं करता है, जो तत्काल स्पष्टतया और पूर्णरूपेण आबंधात्मक हो और व्यावहारिक-मार्गदर्शन देने में पूरी तरह सक्षम हो" ।
इस प्रकार, संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि रीड और स्टेवार्ट- दोनों ने ही एक अपर्याप्त और कामचलाऊ सिद्धांत के अतिरिक्त नीति - शास्त्र को ऐसा कोई महत्त्वपूर्ण सिद्धांत नहीं दिया है, जिसके आधार पर स्वतः प्रमाणित प्रथम सिद्धांतों को नियमित किया जा सके, जबकि उन्हें ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत कर देने का विश्वास था। व्हीवेल (1794 - 1866 )
इसी दिशा में एक अधिक महत्वाकांक्षी, किंतु कम सफल प्रयास व्हीवेल द्वारा अपनी पुस्तक एलीमेन्ट्स ऑफ मारलिटी (1846) में किया गया है। व्हीवेल का सामान्य नैतिक-दृष्टिकोण अपने स्काट - पूर्वजों से भिन्न है। मुख्यतया यह भिन्नता उस पर काट के प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है। स्वतंत्र बौद्धिक एवं नियामकसिद्धांत के रूप में आत्मप्रेम का उसके द्वारा किया गया निरसन और व्यक्ति के बौद्धिक साध्य के रूप में सुख के स्थान पर कर्त्तव्य के स्वीकृति - क्षुधाओं उस पर काट के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं। नैतिक बुद्धि की सर्वोच्चता के आधार पर वह पांच परम सिद्धांतों की घोषणा करता है। वे सिद्धांत - 1. परोपकार, 2. न्याय, 3. सत्य, 4. पवित्रता और 5. आज्ञा हैं। थोड़े बल के साथ यह कह सकते हैं कि पांचों सिद्धांत अधिकार के पांच मुख्य विमार्गों, अर्थात् वैयक्तिक - सुरक्षा, 2. सम्पत्ति, 3. संविदा ( अनुबंध), 4. विवाह, 5. शासन के समरूप हैं। उदाहरणार्थ- व्यक्ति सुरक्षा के वैयक्तिक-अहित का सामान्य कारण दुर्भावना है और उसका विरोधी परोपकार है।