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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/210 को निगमनात्मक रूप से प्रस्तुत करता है, फिर भी वह यह कार्य उचित है या वह कार्य अनुचित है के रूप में मौलिक निर्णयों के बारे में भी बताता है।
___सत्य तो यह है कि नीतिशास्त्र के लिए वैज्ञानिक पद्धति का निर्माण अधिक व्यावहारिक-महत्त्व का विषय नहीं है, क्योंकि वह यह मानता है कि मानव-आचरण में क्या उचित है और क्या अनुचित है? यह जानने के लिए मन की शांत और अनुद्विग्न स्थिति में केवल अंतरात्मा के आदेशों को सुनना ही पर्याप्त है", यद्यपि वह निगमन के द्वारा प्राथमिक नैतिक-नियमों की एक सूची प्रस्तुत करता है, जिसे मनुष्यों की सामान्य नैतिक- धारणाओं से अनुमोदित किया जा सकता है, यद्यपि वह उस सूची की पूर्णता का दावा प्रस्तुत नहीं करता है। सामान्य सद्गुणों से सम्बंधित सिद्धांतों के अतिरिक्त सिद्धांत है- (1) आचरण में उचित और अनुचित के तत्त्व होते हैं, किंतु (2) ये तत्त्व केवल ऐच्छिक-आचरण में ही होते हैं, साथ ही (3) हमें अपने कर्त्तव्य को समझने का प्रयत्न करना चाहिए और (4) उन प्रलोभनों से बचना चाहिए, जो हमें अपने कर्तव्यों से विमुख करते हैं। रीड नैतिकता की पांच मुख्य स्वयंसिद्धियों को प्रस्तुत करता है, इनमें पहली केवल बौद्धिक-आत्म-प्रेम की है, अर्थात् हमें दूरस्थ होने पर भी अपेक्षाकृत अधिक शुभ को और अपेक्षाकृत कम बुराई को प्राथमिकता देना चाहिए। यह बात रीड के द्वारा मान्य नैतिक-शक्ति और आत्म-प्रेम की भिन्नता के आधार पर अंसगत-सी ही लगती है। तीसरी स्वयंसिद्धि परोपकार का सामान्य नियम है, जिसे स्टोइक ढंग से स्पष्ट रूप में ही रखा गया है, अर्थात् कोई भी अपने लिए पैदा नहीं हुआ है। चौथी, पुनः केवल एक अकाट्य-सिद्धांत है, अर्थात् सभी के लिए सभी परिस्थितियों में उचित-अनुचित वही होंगे। यह तथ्य वस्तुनिष्ठ नैतिकता के सभी सिद्धांतों में पाया जाता है। पांचवीं स्वयंसिद्धि ईश्वर के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण के धार्मिक-कर्त्तव्यों का निर्धारण करती है। इस प्रकार, केवल दूसरी स्वयंसिद्धि ही ऐसी प्रतीत होती है, जो कि सामाजिक-कर्त्तव्यों के लिए निश्चित मार्गदर्शन प्रस्तुत कर सकती है, इसके अनुसार, मनुष्यों के निर्माण में प्रकृति का जो उद्देश्य परिलक्षित होता है, हमें उसी उद्देश्य के आधार पर आचरण करना चाहिए। निगमनात्मक-दृष्टि से इसकी अनुपयोगिता' तब स्पष्ट हो जाती है, जबकि हम इसका व्यवहार में प्रयोग करने लगते हैं। यह स्पष्ट है कि इन सभी सिद्धांतों को एक साथ लेने पर भी ये हमें एक सामान्य व्यक्ति की अंतरात्मा के आदेशों को क्रमबद्ध करने में बहुत अधिक आगे नहीं ले जाते हैं और न इनकी अपूर्णताओं की पूर्ति परवर्ती अध्यायों में रीड के द्वारा की