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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 209 क्षुधाओं एवं मनोभावों की नियामक है। इसे युक्तिपूर्वक नैतिक शक्ति के अधीन भी नहीं किया जा सकता है। वस्तुतः, किसी व्यक्ति का यह मानना कि सद्गुण कुल मिलाकर उसके सुख का विरोधी है - यह यथार्थ में नीति से अनुशासित विश्व का उदाहरण नहीं हो सकता है। यह तो उस दुःखद उभयतोपास में फंसने के समान है कि या तो धूर्त (बेईमान ) होना अच्छा है, या मूर्ख होना अच्छा है।
नैतिक-शक्ति के प्रसंग में रीड के कथन मुख्यतया प्राइस से संगति रखते हैं। रीड कर्त्ता और कर्म के सम्बंधों को सरल और अविश्लेषणीय मानता है। उसका सिद्धांत बौद्धिक और क्रियात्मक- दोनों ही है। वह न केवल कार्यों की उचितता और नैतिकआबंधात्मकता पर ही ध्यान देता है, वरन् जिसे उचित समझा गया है, उसे क्रियान्वित करने के संकल्प की प्रेरणा भी देता है। रीड एवं प्राइस - दोनों ही यह मानते हैं कि किसी कर्म के औचित्य और अनौचित्य का यह प्रत्यक्षीकरण कर्त्ता में अच्छाई और बुराई के प्रत्यक्षीकरण के साथ और विशेष संवेगों के साथ जुड़ा है, किंतु जहां प्राइस इन संवेगों को मुख्यतया सुख और दुःख के रूप में, अथवा भौतिक सौंदर्य और सौंदर्य के द्वारा हमारे मन में उत्पन्न भावनाओं के रूप में मानता है, वहां रीड उन संवेगों को मुख्यतया सदाचारी कर्त्ता की उपकारीभावना, निष्ठा एवं सहानुभूति के रूप में या इनके एक दुराचारी कर्त्ता के इनके विपरीत गुणों के रूप में मानता है। जब नैतिक-निर्णय व्यक्ति के स्वयं के कार्यों के संबंध में हो, तो वह सुखद शुभ संकल्प एक शुभ अंतरात्मा का प्रमाण बन जाता है। यह सुखद शुभ संकल्प सभी मानवीयसुखानुभूतियों में सर्वाधिक मूल्यवान् और पवित्र है। रीड अपनी इस मान्यता के प्रति भी सजग है कि नैतिक शक्ति अपने बीज-रूप को छोड़कर जन्मजात नहीं है। इसके लिए शिक्षा, प्रशिक्षण, अभ्यास और आदत की आवश्यकता है, जिसके लिए समाज का होना अपरिहार्य है, जो इसे नैतिक - सत्य की प्राप्ति के योग्य बना सके। रीड प्राइस के अनुरूप इस नैतिक-शक्ति को नैतिक - इंद्रिय (नैतिक - बोध) कहने में भी कोई आपत्ति का अनुभव नहीं करता है। मात्र यही कि हम इस नैतिक-शक्ति को भावनाओं या विचारों का मूल स्रोत न समझें, वरन् इसे चरम सत्यों का मूल स्रोत समझें। यहां वह इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न को छोड़ देता है कि नैतिक तर्कशक्ति का क्षेत्र सार्वभौमिक निर्णय है या व्यक्तिगत निर्णय है। जहां तक हम इसके लिए इंद्रिय शब्द का प्रयोग करते हैं, तब यह दूसरे विकल्प को ही सूचित करता है । वस्तुतः, वह इस प्रश्न पर अपनेआपको अनिश्चयात्मक स्थिति में ही पाता है। यद्यपि वह सामान्यतया नैतिक- पद्धति
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