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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 208
लक्ष्यों की ओर वे प्रवृत्त होते हैं, उनका निर्धारण करने के लिए बुद्धि और निर्णय की आवश्यकता नहीं होती है। मनुष्य में निहित मौलिक प्राणीय व्यवहार के सिद्धांतों का वर्गीकरण वह बटलर की अपेक्षा अधिक गहराई से निम्न रूपों में करता है - (अ) वे क्षुधाएं, जो नियत कालिक और बैचेनी की संवेदनाओं से युक्त होती हैं, जैसे भूख, (ब) (अपने सीमित अर्थ में ) मुख्यतः वर्चस्व या अधिकार की इच्छा, साथ ही आदर या सम्मान की इच्छा और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा और (स) वे मनोभाव या संवेग, जो उपकारी और अपकारी दोनों प्रकार के व्यक्तियों के प्रति होते हैं। परोपकारीअभिरुचियों का सामान्य लक्षण पसंदगी की भावना और परोपकार के पात्र व्यक्तियों
शुभ की इच्छा है। इसी प्रकार, अपकारी- अभिरुचि हानि के पहुंचाने की इच्छा के साथ और अशांति से जुड़ी हुई है, तो भी रीड दूसरे सभी मूलभूत एवं प्राकृतिकआवेगों के प्रति आकस्मिक और ऐच्छिक-नापसंदगी के औचित्य और उपयोगिता को स्वीकार करने में बटलर का अनुसरण करता है।
दूसरी ओर, अर्जित इच्छाएं सामान्यतया न केवल अनुपयोगी हीं हैं, अपितु हानिकारक और घृणित भी हैं। नियामक - सिद्धांत की द्वैतता को मान्य करने में रीड पुनः बटलर का अनुसरण करता है। जैसा कि हमने देखा, यह द्वैतता बटलर के सिद्धांत का केंद्रीय तत्त्व है। वह यह मानता है कि अपने स्वयं के स्थापक शुभ के प्रति निष्ठा ( बटलर का आत्म-प्र - प्रेम) और कर्त्तव्य-बोध ( बटलर का सद्सद्विवेक) वस्तुतः दो अलग-अलग और संगतिपूर्ण बौद्धिक सिद्धांत हैं, यद्यपि अकसर स्वाभाविक रूप से एक ही शब्द विवेक के अंतर्गत समाविष्ट हैं। वह ह्यूम के सिद्धांत के विरोध में प्रथम सिद्धांत (आत्म-प्रेम) बौद्धिकता की स्थापना एवं व्याख्या करने का प्रयत्न करता है। ह्यू का सिद्धांत यह मानता है कि उन साध्यों का निर्धारण करना बुद्धि का कार्य नहीं है, जिनका हमें अनुसरण करना चाहिए, या जिन्हें दूसरे साध्यों की अपेक्षा प्राथमिकता दी जाना चाहिए, किंतु रीड कहता है कि अंततोगत्वा शुभ का प्रत्यय ऐसा है, जिसका निर्माण एक बौद्धिक-प्राणी ही कर सकता है, जिसमें सभी विशेष इच्छाओं के विषयों से अन्यमनस्कता और वर्त्तमान भावनाओं की भूत और भविष्य से तुलना भी निहित है। उस सबके लिए व्यावहारिक रूप से आनंद को दृष्टिगत रखना आवश्यक मानता है। वह यह मानता है कि ऐसे बौद्धिक-प्राणी की कल्पना करना, , जिसमें कुल मिलाकर अपने शुभ का विचार बिना उस शुभ की इच्छा के उपस्थित हो, यह परस्पर विरोधी होगा और यही शुभ की इच्छा ऐसी इच्छा है, जो आवश्यक रूप से सभी विशेष