________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/176 ले जाता है। इसलिए वह अंत में यह निष्कर्ष निकालता है कि वह आसक्ति जिससे आत्मवासनाएं या आत्मानुरक्ति का प्रादुर्भाव होता है उसमें आसक्त होने वाले व्यक्ति के लिए तब अनिष्ट कारक बन जाती है जबकि वह समाज के लिए अनिष्टकारक होने लगती है। किंतु कभी-कभी वे वैयक्तिक और सामाजिक दोनों ही प्रकार के हितों के लिए सहायक भी होती है, यद्यपि शेफ्ट्सबरी इन दोनों की वास्तविक संगति या समानता किसी भी निकटस्थ या अकाट्य तर्क के द्वारा सिद्धि करने का प्रयास नहीं करता है।
__ अस्वाभाविक अनुरागों से एक सुसंतुलित मनस् को पूर्णतया मुक्त होना चाहिए, यह बात भी इसी प्रत्यय में ही निहित है, क्योंकि ये ऐसे अनुराग हैं, जो कि न तो वैयक्तिक हित और न सामाजिक हित की ओर प्रवृत्त होते हैं। यद्यपि यह कहा जा सकता है कि पूरी तरह विनाशकारी इच्छाओं में भी सुख का एक प्रकार निहित होता है, इसलिए जबकि वे बहुत ही तीव्र होती हैं, तो तिरस्कार के योग्य होते हुए भी उनकी संतुष्टि व्यक्ति के सुख के एक घटक की निर्माता प्रतीत होती हैं, किंतु शेफट्सबरी इस दृष्टिकोण को पूर्णतया भ्रांत मानता है। प्रेम करना और दयालु होना उसके अनुसार अपने आप में ही वास्तविक आनंद है जो कि अनुवर्ती दुःख या बेचैनी से युक्त नहीं है और अन्य कुछ नहीं केवल संतोष को उत्पन्न करता है। दूसरी ओर विद्वेष, घृणा और कटुता अपने आप में ही दुःख और पीड़ा है, जो कि किसी प्रकार का सुख या परितोष नहीं दती है, सिवाय इसके कि उस अस्वाभाविक इच्छा की जिससे पूर्ति होती है, उसके द्वारा क्षणिक संतुष्टि हो जाती है। चाहे यह सुख कितना ही तीव्र क्यों न प्रतीत हो इसमें इसे उत्पन्न करने वाली अवस्था का दुःख अधिक मात्रा में ही निहित है। यदि हम इसमें दूसरों के अहित की चेतना की दुःखदता को जोड़ें, तो उसके लिए यह पूरी तरह स्पष्ट है कि इन जघन्य त्रासजनक और अस्वाभाविक अनुराग की उपस्थिति ही उच्चतम बिंदु की दुःखदता है। इस प्रकार हम पुनः उस सामान्य निष्कर्ष की ओर आते हैं कि अनुरक्तियों की वह संतुलितता, व्यवस्थितता एवं मितव्ययता, जो कि सामाजिक हित की ओर प्रवृत्त होती है, वह वैयक्तिक हित की ओर भी प्रवृत्त होगी।
अभी तक हमनें नैतिक इंद्रिय के उस सिद्धांत के सम्बंध में कुछ नहीं बताया, जिसे कभी-कभी शेफ्ट्सबरी के प्रमुख सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यद्यपि यह सिद्धांत वस्तुतः महत्वपूर्ण और विशिष्ट है, किंतु मुख्य तर्क के लिए आवश्यक
176