________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/188 उच्च है, इसका निश्चय करने की कोई व्यावहारिक आवश्यकता नहीं है। हचीसन ने इन्हें आपस में सुसंगत मानकर इस झगड़े को ही समाप्त कर दिया है। केवल गौण अर्थ में इसका अनुमोदन किन्हीं निश्चित अवधारणाओं से और प्रत्यक्ष रूप से इसका अनुमोदन सद्गुणात्मक अनुरागों से सम्बंधित योग्यताओं एवं स्वभावों से होता है, जैसा कि निष्पक्षता, सत्यवादिता, सहनशीलता, विनयशीलता आदि सद्गुणों में देखा जाता है। यहां निम्न स्तर पर विज्ञानों और कलाओं के साथ-साथ शारीरिक कुशलताओं और उपलब्धियों को रखा गया है। यह अनुमोदन अपने वास्तविक रूप में नैतिक नहीं है, किंतु यह केवल शिष्टाचार और शालीनता के बोध से संबंधित है, जिसे विनयशीलता के साथ साथ नैतिक इंद्रिय से अलग किया जाना चाहिए। हचीसन की मान्यता में शांत-आत्म-प्रेम कास्वतः नैतिक अनुमोदन निष्पक्ष नहीं है। वे अनुराग जो, कि पूरी तरह से आत्मप्रेम से निकले हैं, तो भी इनमें परोपकारिता के अभाव को प्रमाण नहीं माना गया है। इनका दूसरों पर हानिकारक प्रभाव नहीं है, ये नैतिक इंद्रिय से पूर्णतया भिन्न है। इसके साथ ही वह आनंद के घटकों कासावधानी पूर्वक विश्लेषण करने का प्रयत्न करता है। ताकि यह बताया जा सके कि व्यक्ति के हितों के लिए एक यथार्थ सम्मान सदैव ही नैतिक इंद्रिय और परोपकारिता के अनुरूप है। शेफ्ट्सबरी की स्वार्थ (स्वहित) और परार्थ (लोकहित) के बीच संगति की धारणा को स्वीकार करते हुए भी हचीसन परोपकार की भावना की निष्कामता को पूरी तरह से स्थापित करने के लिए अधिक सजग है शेफ्ट्सबरी का निष्कर्ष यह है कि परोपकार की भावना साधारण अर्थ में स्वार्थपरक नहीं है, किंतु उसने इस धारणा पर बल दिया है कि सुख का सुखद कार्यों से अवियोज्य संबंध है। यहां वह एक सूक्ष्म स्वहितवादी सिद्धांत की
ओर निर्देश करता है, जिससे वह तब तक नहीं बच सकता, जब तक कि वह यह मानता है कि आंतरिक पुरस्कार ही परोपकारी व्यक्ति की वास्तविक प्रेरणा का सर्जक है। इस सम्बंध में हचीसन का कहना यह है कि निस्संदेह प्रेम के संवेग की यह प्रसन्नता (आनंद) ही इस परोपकार की वृत्ति को जारी रखने एवं इसका विकास करने के लिए एक प्रेरक है, किंतु यह सुख केवल इसकी इच्छा करने मात्र से, दूसरे सुखों की अपेक्षा अधिक प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। केवल दूसरों के कल्याण की निष्काम भावना के सृजन एवं अनुसरण की अप्रत्यक्ष (परोक्ष) प्रक्रिया के द्वारा ही इसको प्राप्त किया जा सकता है। इस निष्काम भावना को परोपकार के करने के लिए मिलने वाले सुख की कामना (इच्छा) से भिन्न बताया गया है। वह इस बात को स्पष्ट