________________
नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 187
स्थितियों में वर्तमान में भी दुःख का अति-आधिक्य उत्पन्न करने वाली प्रतीत नहीं होती है, यद्यपि किन्हीं अवसरों पर वे इसकी विरोधी भी प्रतीति हो सकती हैं। शेफ्ट्सबरी के सिद्धांत का विकास एवं व्यवस्थापन
बटलर इस सम्बंध में पूर्ण आश्वस्त नहीं है कि किसी भी लेखक ने सद्गुण और परोपकार के बीच उस पूर्ण संगति को स्वीकार किया हो, जिसका उसने पूर्वोक्त उद्धरण में खण्डन किया है, अपितु वह यह सोचता है कि कुछ प्रकाण्ड विद्वानों ने भी इसे इस प्रकार से अभिव्यक्त किया है कि एक साधारण पाठक के लिए खतरे के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं और वह उस खतरनाक गलती में गिर सकता है, जिसका कि इसने निर्देश किया है। हम यह बात मान सकते हैं कि प्रकाण्ड लेखकों की ओर किया गया यह संकेत सेफ्ट्सबरी की ओर हो सकता है। इसके साथ ही हम इस संकेत का दूसरा निर्देश हचीसन की ओर भी मान सकते हैं।
सन 1694-1747 )
हसन ने अपने ग्रंथ में सद्गुण का परोपकारिता के पूर्ण तादात्म्य बताया है। हचीसन के मरणोपरांत प्रकाशित इस ग्रंथ में ( 1975 ई.) इस तादात्म्य को किंचित् रूप से स्पष्ट किया गया है। उस ग्रंथ में सेफ्ट्सबरी के सामान्य दृष्टिकोण को ही पूरी तरह से अन्य अनेकों नए मनोवैज्ञानिक विभेदों के स्पष्टीकरण के द्वारा विकसित किया गया है। शांत परोपकारिता का एवं इसके साथ ही साथ बटलर के बाद से शांतआत्मप्रेम का भी वैयक्तिक या सामाजिक भावावेशों से अंतर किया गया है। हचीसन नैतिक इंद्रिय के नियामक एवं नियंत्रक कार्य पर अधिक बल देने में बटलर का अनुसरण करता है, किंतु फिर भी वह करुणाभाव" को नैतिक अनुमोदन का मुख्य विषय मानता है। उसने शांत एवं व्यापक अनुराग को विक्षुब्ध एवं संकुचित भावों की अपेक्षा वरेण्य माना है । वह यह मानता है कि सर्वोत्तम मानव स्वभाव सर्वाधिक अनुमोदन को स्वाभाविक रूप से प्राप्त कर लेता है। वह या तो शांत एवं स्थायी सार्वलौकीक सुख का ऐसा संकल्प है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति संवदेनशील प्राणियों के उच्चतम संभावित प्रकार के सर्वोच्च आनंद की इच्छा करने हेतु तत्पर होता है। यह नैतिक अच्छाई के प्रति प्रेम और नैतिक अच्छाई की इच्छा है जो कि व्यक्ति में निहित उस सार्वलौकिक सुख के संकल्प से अभिन्न है, जिसका कि वह मुख्य रूप से अनुमोदन करता है। ये दोनों सिद्धांत एक दूसरे के विरोधी नहीं है और इसलिए इनमें से कौन