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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/168 महत्वपूर्ण संशोधन उसके स्वयं के चिंतन का परिणाम है। यह कि सभी मनुष्य मूलतया स्वतंत्र और समान हैं, किसी को किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए, किंतु उसके संरक्षण में वहीं तक सहयोग करना चाहिए जहां तक कि उसके आत्मसंरक्षण को कोई हानि नहीं पहुंचती है। संविदाओं का पालन करना चाहिए, माता-पिताओं को अपने बच्चों के निर्देशन एवं अनुशासन का अधिकार है और साथ ही उनके शिक्षण एवं पालन का कर्तव्य भी है, किंतु यह तब तक ही, जब तक कि वे बौद्धिक परिपक्वता की उम्र को प्राप्त नहीं हो जाते। प्रथमतया, संसार की सम्पत्ति सभी की है किंतु जब कोई उसे अपने परिश्रम के साथ प्राप्त करता है तो वह वैयक्तिक सम्पत्ति हो जाती है!2, यदि वह पर्याप्त एवं सर्वोपयोगी है तो उसे सबके लिए छोड़ दिया जाए। उपरोक्त सिद्धांत लाक की दृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति के लिए, जो कि मानव सम्बंधों पर विचार करता है, सामान्य सुख के परमादर्श के बाह्य संदर्भ के बिना भी सरल और बोधगम्य है। मनुष्य को मूलतया एक दूसरे के लिए और ईश्वर के लिए उत्पन्न किया गया है। वह कहता है कि ईश्वर ने मनुष्यों को प्रकृति और शक्ति में समान बनाया है और इसलिए उन्हें एक दूसरे से स्वतंत्र माना जाना चाहिए। पुनः, ईश्वर ने मनुष्य को अपने आनंद के अंतिम क्षणों में बनाया है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपने और दूसरों के जीवन के रक्षण के लिए बाध्य है। इस प्रकार लाक नैतिक नियमों की सामान्य सुख के प्रवर्द्धन की प्रवृत्ति का विरोधी नहीं है। उसे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्यों में सामान्य सुख के प्रवर्द्धन की यह प्रवृत्ति पाई जाती है। वह किसी सीमा तक इस सम्बंध में तर्क भी प्रस्तुत करता है, किंतु तर्क करने की यह दिशा उसके दर्शन का मुख्य नहीं है, इसलिए यदि किसी अर्थ में उसके दृष्टिकोण को कर्मों के औचित्य के निर्धारण के आधार पर, न कि केवल उस प्रेरक के आधार पर, जिसे यह सिद्धांत सामान्य रूप से स्वीकार करता है, यदि उन्हें उपयोगितावादी कहा जाए, तो हमें यह जोड़ देना होगा कि बहुत-कुछ रूप में उसका यह उपयोगितावाद अव्यक्त और अचेतन ही है। क्लार्क (1675-1729 ई.)
सिविल गवर्नमेन्ट नामक लाक के ग्रंथ के 1705 ई. में प्रकाशित होने के पंद्रह वर्ष पश्चात् क्लार्क ने नैतिकता को गणित के समान अकाट्य स्वतःप्रमाण्य तर्कवाक्यों के द्वारा प्रमाणीकरण के योग्य माना और इस (स्वयंसिद्धियों) प्रकार के नीतिशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में रखने का एक प्रभावकारी प्रयास किया, किंतु उसका यह प्रयास लाक की अपेक्षा कडवर्थ