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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/173 वस्तुतः यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि ऐसा चयन अबौद्धिक है। शेफ्ट्स बरी (1671 से 1713)
शेफ्ट्सबरी के द्वारा नीति-निर्माण के लिए किसी सीमा तक स्वाभाविक आत्मप्रेम के विरोधी सामाजिक कर्तव्यों के सिद्धांत को निरपेक्ष बुद्धि की अपेक्षा दूसरे मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया, जो कि मनुष्य के सामाजिक स्नेह की स्वाभाविक अभिव्यक्ति के रूप में सामाजिक-कर्त्तव्यों और उसके आत्मसम्मान (आत्महित) के विचार के बीच सामान्य संगति के निदर्शन के द्वारा सम्भव था। शेपट्सबरी ने विचार की इसी दिशा को ग्रहण किया। यद्यपि स्वाभाविक आत्मीयता (सहानुभूति) मनुष्य को अपने साथियों से जोड़ती है, इस तथ्य पर जोर देने वाला वही एकमात्र मौलिक विचारक नहीं था। यदि पूर्वयुग के विचारकों को छोड़ दें, तो भी कम्बरलैण्ड ने इस पर किसी सीमा तक विचार किया है और क्लार्क ने विश्व-कल्याण की निरपेक्ष बौद्धिकता की अभिव्यक्ति में इसका सहारा लिया है। किंतु शेपट्सबरी के पूर्व किसी भी विचारक ने इसे अपने चिंतन का केंद्र नहीं बनाया था, न अभी तक किसी ने नैतिक रूचि का केंद्र यह मानकर कि अमूर्त नैतिक अंतरों या ईश्वरीय विधान के नियमों की ज्ञाता बुद्धि है। बुद्धि से सामाजिक कर्तव्यों के चालक संवेगात्मक आवेगों पर पूरी तरह स्थानांतरित किया था और न किसी ने अनुभूति के सावधानीपूर्ण विश्लेषण के द्वारा हमारी क्षुधात्मक प्रकृति के निष्काम और स्वहितवादी पक्षों का स्पष्ट रूप से विधान करने का प्रयास या इन दोनों पहलुओं की यथार्थ संगति को सिद्ध करने का प्रयास किया था। शेफ ट्सबरी अपनी नीति सम्बंधी पुस्तक (1771) का आरम्भ हाव्स के द्वारा प्रस्तुत शुभ की उस स्वार्थवादी व्याख्या की आलोचना से करता है । हमने देखा था कि इस स्वार्थवादी व्याख्या का पूरी तरह बहिष्कार कर्त्तव्य के बौद्धिक अंतःप्रज्ञावादी सिद्धांत में अनिवार्य रूप से नहीं हुआ था। वह कहता है कि यह व्याख्या तभी सत्य हो सकती है जबकि हम मनुष्य को पूर्णतया एक असंबंधित (समाज से कटा हुआ) व्यक्ति माने। निस्संदेह ऐसे व्यक्ति को हम अच्छा व्यक्ति कह सकेंगे, यदि उसकी वासनाओं (आवेगों) और उसकी वृत्तियों में संगति हो और उसकी स्वयं की सुखशांति' की उपलब्धि के लिए स्वीकार की गई हो, किंतु हमें उस व्यापक व्यवस्था के सम्बंध में भी विचार करना