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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/161 प्राथमिक विषय बना। यह हाब्स की आलोचना अथवा परम्परागत सिद्धांतों की पुनः प्रति-स्थापना केम्ब्रिज के नीतिवेत्ताओं और कम्बरलेण्ड के द्वारा क्रमशः भिन्न-भिन्न पद्धतियों से की गई। एक, केम्ब्रिज नीतिवेत्ताओं के लिए नैतिकता प्रथमतः केवल नियम-संहिता की अपेक्षा उचित और अनुचित एवं शुभ और अशुभ के ज्ञान का एक अंगथी, जो कि किसी विधायक संकल्प से स्वतंत्र अपने निरपेक्षस्वरूप और अंतरात्मा की निश्चितता पर बल देती है, दूसरी ओर, कम्बरलेण्ड नैतिकता के विधिक दृष्टिकोण से सहमत हैं। वे प्राकृतिक नियमों को बुद्धि पर आधारित सबके सामान्य शुभ के एकमात्र सर्वोच्च सिद्धांत पर आधारित करते हैं एवं इसी रूप में उनकी प्रमाणिकता स्थापित करते हैं। इस प्रकार सामान्य शुभ के सिद्धांत पर आधारित मानकर भी उन्हें ईश्वरीय अंकुश के द्वारा पूर्णतया समर्थित दिखाने का साहस करते हैं। केम्ब्रिज के नीतिवेत्तागण कडवर्थ (सन् 1617 से 1688)
कडवर्थ नीतिशास्त्र के एक ऐसे प्रमुख विचारक हैं, जो सत्रहवीं शताब्दी के केम्ब्रिज के विचारकों के उस छोटे समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे केम्ब्रिज प्लेटोवादी के नाम से जाना जाता था। यह समूह नवप्लेटोवाद के माध्यम से जाने गए प्लेटोवादी सिद्धांतों को ग्रहण करता है, किंतु इसके साथ ही डेकार्थ के उन नए विचारों से प्रभावित है, जिनमें बौद्धिक धर्मशास्त्र को धार्मिक-दर्शन से मिलाने का प्रयत्न किया गया है। कडवर्थ का प्रसिद्ध ग्रंथ शाश्वत एवं अपरिवर्तनीय नैतिकता है। जो कि उसकी मृत्यु के (1688) चालीस वर्ष बाद भी प्रकाशित नहीं हो सका था। इस ग्रंथ में उसका मुख्य उद्देश्य ईश्वरीय या मानवीय स्वेच्छिक संकल्प से स्वतंत्र शुभ और अशुभ के शाश्वत एवं अनिवार्य अंतर को बनाए रखना था। इस धारणा को वह न केवल हाव्स के उस सिद्धांत के विरोध में मान्य करता है जिसके अनुसार शुभ और अशुभ का निर्धारण शासन के द्वारा होता है। इसे वह स्काटस, ओकम और दूसरे परवर्ती धर्मशास्त्रियों के भी विरोध में स्वीकार करता है, जो कि यह मानते थे कि समग्र नैतिकता केवल ईश्वर के संकल्प या विधायक आदेश पर निर्भर है। कडवर्थ के अनुसार शुभ और अशुभ के विभेद की एक वस्तुगत सत्ता है, जिसे दिक् या संख्या के सम्बंधों के समान ही बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है। निस्संदेह मानवीय मस्तिष्क में उसका ज्ञान ईश्वर के द्वारा आता