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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/155 होगा। इसके साथ ही वह ईश्वर एक आदर्श मानदण्ड प्रस्तुत करता है, जिसके आधार पर कानूनों में संशोधन हेतु मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। कुछ स्थलों पर न्यायविदों की भाषा से यह प्रतीत होता है कि संयोग से कुछ शब्द छोड़ दिए गए थे। मुझे यह बात संदेहास्पद लगती है। मैं सोचता हूं कि ग्रोटीअस ने अपने उसी अध्याय के 9 वें भाग में जो कुछ कहा उसके अनुसार 10 वें भाग में इस पद को छोड़ दिया गया, जो कि सामान्यतया नैतिक कर्तव्यों पर लागू होता है। यद्यपि इन शब्दों के जोड़ देने से परिभाषा उसके विषय के सामान्य विवेचन की दृष्टि से अधिक संगतिपूर्ण बन जाती है, इसलिए मैंने भी इन शब्दों को रहने दिया है। स्पष्टतया यह बात यह अभिव्यक्त करती है मानव इतिहास में सभ्य समाज व्यवस्था के पूर्व एक युग ऐसा भी था जब मनुष्य प्राकृतिक नियमों से पूर्णतया शासित होता था। सिनेका के माध्यम से हमें यह ज्ञात होता है कि स्टोइक पोसीहोनिअस ने इस युग का पौराणिक स्वर्णयुग से तादात्म्य किया था। इस प्रकार गैर ईसाई स्रोतों से लिए गए ये विचार जेनेसिस के आख्यानों से संकलित विचारों के साथ मध्ययुगीन विचारकों के मस्तिष्कीय चिंतन से घुल मिल गए । इस प्रकार राजनीतिक दृष्टि से न सही, किंतु सामाजिक दृष्टि से प्राकृतिक राज्य की अब धारणा की स्थापना एवं प्रचलन हो गया, जिसमें व्यक्ति या एकल परिवार मात्र उन प्राकृतिक नियमों के सहारे ही साथ-साथ रहने लगे, जो सबके समान अधिकार की पृथ्वी की वस्तुओं पर अपने-अपने उपयोग से पारस्परिक हस्तक्षेप एवं हानियों से रोक सके जो संतान पर माता-पिता के प्रति, पत्नी की स्वामीभक्ति के दायित्व को एवं स्वेच्छा से किए संविदाओं के पालन को सम्भव बना सके। ग्रोटीअस ने अंतर्राष्ट्रीय कर्तव्य एवं अधिकारों का निर्धारण करने के लिए उपादेय प्राकृतिक नियम के सिद्धांतों के उपयोग से इस विचार को ग्रहण किया और उसे अतिरिक्त शक्ति एवं ठोसपन प्रदान किया क्योंकि निगम इकाइयों के रूप में स्वीकृत स्वतंत्र (नियम) अभी भी राष्ट्र की प्राकृतिक अवस्था की दृष्टि से एक दूसरे पर स्पष्टतया निर्भर थे। यह नहीं माना जा सकता है कि आदिम युग के स्वतंत्र मनुष्यों के व्यवहार में वर्तमान राष्ट्रों की अपेक्षा प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत पूरी तरह चरितार्थ हो चुका था। वस्तुतः ग्रोटीअस सबसे अधिक प्राथमिक अधिकारों के उल्लंघन से उत्पन्न होने वाले व्यक्तिगत युद्धों का प्राकृतिक अधिकार के दृष्टिकोण से विशेष रूप से सम्बंधित है। सम्यक् ज्ञान के अनुशासन के रूप में पूर्व में उद्धृत प्राकृतिक नियम की परिभाषा एवं उसके पालन की सामान्य प्रवृत्ति को भी अपने में समाहित करती है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए